Budget 2023:-विधानसभा में सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पेश , केंद्र को प्रस्ताव भेजने के लिए मिली सहमति , हेमंत सोरेन ने बतलाया क्यों जरूरी है सरना धर्म कोड
Budget 2023
प्रेरणा चौरसिया
Drishti Now Ranchi
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आज झारखंड विधानसभा में सरना धर्म कोड की मांग को लेकर एक प्रस्ताव रखा. मुख्यमंत्री ने सरना धर्म कोड के महत्व और राज्य के आदिवासी समुदाय की चल रही मांगों का हवाला देते हुए सदन से केंद्र को प्रस्ताव भेजने की अनुमति देने का भी अनुरोध किया।
केंद्र को भेजा गया प्रस्ताव
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आज झारखंड विधानसभा में सरना धर्म पर एक प्रस्ताव रखा. हेमंत सोरेन के अनुसार हमारा राज्य वह है जहां जनजातियों की प्रधानता है। कुछ साल पहले से सरना आदिवासी समुदाय सरना धर्म संहिता को अपनाने के लिए संघर्ष कर रहा है। उनकी अपनी पहचान सुनिश्चित करने की क्षमता के कारण वर्तमान में सरना धर्म संहिता की मांग है। एक महत्वपूर्ण चिंता सरना धर्म की घटती संख्या है।
कब कितनी थी आदिवासी की संख्या
हेमंत सोरेन ने सदन में बताया, आदिवासियों की जनसंख्या क्यों कम हो रही है। 1931 से 2011 के आदिवासी जनसंख्या के विश्लेषण से यह पता चलता है पिछले 8 दशकों में 38.03 से घटकर 26.02 प्रतिशत हो गयी। इसमें 12 प्रतिशत की कमी आयी है, जो गंभीर सवाल है। प्रत्येक वर्ष झारखंड की आबादी की अन्य समुदाय से आदिवासी की दर काफी कम है। 1931 से 1941 के बीच आदिवासी आबादी की वृद्धि दर 13.76 है वही अन्य समुदाय की वृद्धि दर 11.13 है। सन 1951 से 1961 के आंकड़े पर गौर करें तो यह आदिवासी की वृद्धि दर 12.71 प्रतिशत है वही गैर आदिवासी की वृद्धि दर 23.62 प्रतिशत है। 1961 से 1971 के बीच आदिवासियों की वृद्धि दर 15.89 प्रतिशत है वही गैर आदिवासी की वृद्धि दर 26.01 प्रतिशत है। 1971 से 1981 के बीच आदिवासी की वृद्धि दर 16.77 प्रतिशत वही गैर आदिवासी की वृद्धि दर 27.11 प्रतिशत 1981 से 1991 के बीच आदिवासी की वृद्धि दर 13.41 वही गैर आदिवासी समुदाय की वृद्धि दर 28.67 प्रतिशत है। 1991 से 2001 के बीच आदिवासी की वृद्धि दर 17.19 वही गैर आदिवासी की वृद्धि दर 25.65 प्रतिशत है।
क्या वजह है इस कमी की
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सदन में बताया कि जनगणना का समय प्रत्येक दस वर्ष में 9 फरवरी से 28 फरवरी के बीच होता है। यह खाली समय है जब आदिवासी अपने कार्य से मुक्त होकर बरसात के बाद आदिवासी इस खाली समय में दूसरे राज्य पलायन कर जाते हैं। ऐसे लोगों की गणना नहीं हो पाती है। वैसे आदिवासियों की गणना सामान्य जाति के रूप में हो जाती है। आदिवासी जनसंख्या की गिरावट की वजह योजना पर पड़ने वाला प्रभाव भी है। जनगणना योजना के साथ- साथ पांचवीं अनुसूची के कई ऐसे जिलों को हटाने की भी मांग होती है जहां आदिवासी की जनसंख्या में कमी आयी है। जनसंख्या में आयी कमी आदिवासी को मिलने वाले संवैधानिक अधिकार को प्रभावित करेगा। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई जैन धर्म के इतर अलग सरना कोड आवश्यक है। इसके अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। इससे आदिवासियों की जनगणना सही हो सकेगी, उनके अधिकारों की रक्षा होगी। योजना, परियोजना का लाभ भी आदिवासियों को मिल सकेगा। आदिवासी की भाषा, जीवन शैली और इतिहास का संरक्षण होगा।
1961 में आदिवासियों का अलग धर्म कोड था
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सदन में कहा, सरना कोड आदिवासी समुदाय के विकास के लिए आवश्यक है।1871 से 1951 तक जनगणना में आदिवासी में अलग धर्म कोड था 1961 से 62 की जनगणना से इसे हटा दिया गया। 2011 की जनगणना में देश के 21 राज्य में रहने वाले लगभग 50 लाख आदिवासी ने सरना धर्म बताया है। झारखंड में रहने वाले लोग भी वर्षों से इसकी मांग करते रहे हैं। सरकार से ज्ञापन, आवेदन भेजकर मांग की है। विधानसभा से केंद्र को प्रस्ताव भेजने का समर्थन मांगा गया।
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