CM:-हेमंत अच्छे नेता, लेकिन मंत्रियों-अधिकारियों के पास विजन नहीं, इन नीतियों से हो सकता है नुकसान- राज्यपाल रमेश बैस
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Prerna Chourasia
Drishti Now Ranchi
झारखंड सरकार ने बुधवार को राज्यपाल रमेश बैस को विदाई दी। अब वे शुक्रवार को महाराष्ट्र चले जाएंगे। इससे पहले राज्यपाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। कहा-मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन मुझे अच्छे लगते हैं। वे अच्छे नेता हैं, लेकिन राज्य के मंत्रियों और अधिकारियों के पास विजन और कमिटमेंट की कमी है। इसी कारण विकास गति नहीं पकड़ पा रहा है। अगर सही ढंग से काम हो तो राजस्व भी बढ़ेगा और यह बीमारू राज्य से निकलकर विकासशील राज्य की श्रेणी में खड़ा हो सकता है। लेकिन विकास तो तभी होगा, जब विधि-व्यवस्था ठीक हो।
दुकानदार दुकान में और आम आदमी घर के अंदर खुद को असुरक्षित महसूस करे तो कैसे होगा। निवेशक यहां निवेश करना चाहते हैं। शांतिपूर्ण ढंग से काम करना चाहते हैं। उद्योग लगाना चाहते हैं। लेकिन राज्य के बाहर झारखंड की जो छवि बनती है, उससे यहां आने से कतराते हैं। उन्होंने कहा कि बिना सोचे-समझे 1932 के खतियान आधारित स्थानीय और नियोजन नीति बनाने से राज्य को नुकसान हो सकता है। टीएसी के मामले में भी राज्यपाल सर्वोपरि होता है।
संवैधानिक अभिभावक के रूप में आदरणीय श्री रमेश बैस जी का मार्गदर्शन राज्य को हमेशा मिलता रहा।
महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त होने पर झारखण्ड की जनता की ओर से आपको अनेक-अनेक बधाई, शुभकामनाएं और जोहार। आपके मार्गदर्शन में महाराष्ट्र आगे बढ़ता रहे यही कामना करता हूँ। pic.twitter.com/GSOQABS6UI— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) February 15, 2023
निर्वाचन आयोग के लिफाफे पर
अगर कोई बिल आता है तो गवर्नर उस पर जांच करा सकता है। राय ले सकता है। इसकी कोई समय-सीमा नहीं है। हेमंत सोरेन मामले में भी बहुत बातें हुई, लेकिन निर्वाचन आयोग ने भी कहा कि फैसले के लिए कोई समय-सीमा नहीं है। कब निर्णय लेना है, यह गवर्नर पर पर। हेमंत सोरेन ने भी फैसले की बात कही थी। तब मैंने कहा था कि जब से झारखंड बना, यहां स्थिर सरकार नहीं रही। इसलिए अपना काम कीजिए, हम समय पर निर्णय लेंगे। इसी का परिणाम है कि दो साल में जितना काम नहीं हुआ, निर्वाचन आयोग के मंतव्य के बाद छह माह में हो गए। अब अगर कोई अपनी ही परछाई से डरे तो कोई क्या कह सकता है।
1932 के खतियान आधारित स्थानीयता पर
1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति और आरक्षण नीति विधानसभा से पारित हुआ। हाईकोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। उसे फिर विधानसभा ले जाया गया। 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता से कितना नुकसान हो सकता है, इस पर गंभीरता से मंथन की जरूरत है। क्योंकि जब झारखंड बना तो यह बिहार का भाग था। वहां से जो लोग आए, उनका क्या होगा। सरकार गिराने के आरोप पर: सरकार गिराने की भावना होती तो आरोप-प्रत्यारोप नहीं होते। हमने संविधान के अनुसार काम किया। किसी के पूर्व के इतिहास को नहीं, उसके पद को देखा जाता है। जैसे पंडित वेदी पर बैठता है तो वह धर्म की बात करता है। जज की कुर्सी पर कोई बैठता है तो संविधान के तहत निर्णय लेता है। इसी तरह गवर्नर की कुर्सी पर बैठ कर संविधान के अनुरूप निर्णय लिया। यह अलग बात है कि आरोप-प्रत्यारोप भी हुए।