20250529 143116

झारखंड में नक्सली साये में कोयला उद्योग ! : डकरा, केडीएच, और पुरनाडीह के कांटाघर ठप : देखे वीडियो

झारखंड में नक्सली साये में कोयला उद्योग: डकरा, केडीएच, और पुरनाडीह के कांटाघर ठप
खलारी :संजय ओझा
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश से मार्च 2026 तक नक्सलवाद खत्म करने का दावा कर रहे है ,राज्य की हेमंत सरकार के नेतृत्व में भी लगातार नक्सलियों का सफाया हो रहा है । ऑपरेशन ग्रीन हंट ,  ऑपरेशन डबल बुल , ऑपरेशन ऑक्टोपास, ऑपरेशन संकल्प , ऑपरेशन डाका बेड़ा , के तहत नक्सलियों  का मारे जा है लेकिन ये क्या झारखंड की राजधानी रांची से महज 50 किलोमीटर दूर खलारी में नक्सलियों के खौफ में CCL के NK एरिया का काम बंद पड़ा है । दरअसल खलारी के नॉर्थ कर्णपूरा (एनके) क्षेत्र में कोयला उद्योग पर नक्सली खतरे का साया मंडरा रहा है !

 

IMG 20250529 WA0010
               बंद पड़ा कांटाघर
बुधवार, 28 मई , को दोपहर 12 बजे के बाद डकरा, केडीएच (कुजू डेवलपमेंट हीराकुंड), और पुरनाडीह के कांटाघर अचानक बंद हो गए। वजह? एक नक्सली संगठन की ओर से कर्मचारियों और लिफ्टरों को दी गई खौफनाक धमकियां !  चर्चा है व्हाट्सएप्प कॉल और एसएमएस के जरिए भेजे गए संदेशों में काम बंद करने की सख्त हिदायत दी गई, साथ ही चेतावनी दी गई कि न मानने पर जान से हाथ धोना पड़ सकता है। इस डर के चलते कांटाघरों का कामकाज पूरी तरह ठप हो गया, और कोयला लोडिंग के लिए खड़े ट्रक-हाइवा सड़कों पर बेसहारा छोड़ दिए गए।

 

IMG 20250529 WA0014

खौफ का मंजर: धमकी से दहशत
खलारी और पिपरवार थाना क्षेत्रों में स्थित ये कांटाघर कोल इंडिया की परियोजनाओं का दिल माने जाते हैं, जहां कोयले का वजन और परिवहन होता है। लेकिन नक्सलियों की धमकी ने इस दिल की धड़कन को रोक दिया। सूत्र बताते है की कर्मचारियों को मिले मैसेज में साफ कहा गया, “काम बंद करो, वरना अंजाम भुगतने को तैयार रहो।” डर ऐसा कि कई ट्रक चालक अपने वाहनों को सड़क पर छोड़कर भाग खड़े हुए। कांटाघरों के सामने ट्रकों की कतारें और सन्नाटा इस बात की गवाही दे रहा है कि नक्सली धमकी कितनी गंभीर थी।

IMG 20250529 WA0012

         स्क्रैप उठाव एक अबूझ पहेली
केडीएच में हाल ही में स्क्रैप उठाव का काम फिर से शुरू हुआ, जिसने क्षेत्र में नई हलचल पैदा की। सूत्रों के मुताबिक बुधवार को दो ट्रक स्क्रैप लोड करने के लिए लगे, जिनमें से एक वजन के बाद रवाना भी हो गया। लेकिन स्थानीय लोगों की मानें, तो स्क्रैप उठाव का यह काम कांटाघरों को हमेशा विवादों के घेरे में रखता है। कुछ का मानना है कि नक्सली संगठन इस तरह की गतिविधियों को अपने प्रभाव क्षेत्र में चुनौती मानते हैं, और धमकियां उसी का नतीजा हो सकती हैं।
मीडिया को जानकारी DSP देते रामनारायण चौधरी
प्रशासन की सुस्ती और DSP का गोलमोल जवाब
इस घटना पर खलारी DSP राम नारायण चौधरी ने बताया की बैड एलिमेंट नही बक्शे जाएंगे।  लेकिन वे महाप्रबंधक के द्वारा इस मामले पर  लिखित शिकायत हुई है या नही इस पर कहा की आपको थाना में पता करना होगा। तो सवाल यह है की DSP साहब लाव ,लश्कर के साथ कांटा घरो की सुरक्षा जायजा लेने क्यों आये है जब कोई चिंता की बात नही तो कांटा घर क्यों बंद है । हर किसी के चेहरे पर डर का साया है । लेकिन कोई अपना मुंह नही खोलना चाहता । DSP साहब बस गोलमोल जवाब दे रहे है बैड एलिमेंट नही बचेगा , लेकिन कांटा बाबुओ को पुलिसिया भरोसा नही दिला पा रहे है ।
नक्सलवाद का पुराना दंश
झारखंड में नक्सलवाद कोई नई कहानी नहीं है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य के 16 जिले नक्सल प्रभावित हैं, जो देश में सबसे ज्यादा है। खनन और कोयला उद्योग नक्सलियों के निशाने पर रहते हैं, क्योंकि वे इन्हें सरकार और कॉरपोरेट्स की साझेदारी का प्रतीक मानते हैं। हाल ही में अप्रैल 2025 में बोकारो के लुगु हिल्स में हुई मुठभेड़, जिसमें आठ नक्सली मारे गए, और मई में नक्सलबाड़ी लड़ाई सप्ताह के दौरान बढ़ी सुरक्षा चौकसी इस बात का सबूत है कि नक्सल समस्या अभी खत्म नहीं हुई। केंद्र सरकार ने 2026 तक नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ने का लक्ष्य रखा है, लेकिन इस तरह की घटनाएं उस लक्ष्य की राह में बाधा बनी हुई हैं।
नक्सलियों के भय से कितना नुकसान होगा
आर्थिक नुकसान: कांटाघरों का बंद होना कोयला आपूर्ति और परिवहन पर भारी पड़ सकता है। यह न केवल कोल इंडिया की परियोजनाओं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगा।
सुरक्षा की जरूरत: कर्मचारियों और चालकों में डर का माहौल खत्म करने के लिए तत्काल सुरक्षा इंतजाम और पुलिस कार्रवाई जरूरी है।
नक्सलियों की रणनीति
जानकारों का मानना है कि नक्सली इस तरह की धमकियों से अपने प्रभाव को बनाए रखना चाहते हैं। स्क्रैप उठाव और खनन गतिविधियां उनके लिए निशाना बनती हैं, क्योंकि नक्सलियों की विचारधारा अब नहीं रह गई है नक्सली छोटे-छोटे संगठनों में बंट गए हैं नक्सली की जो विचारधारा थी , वह समाप्त हो चुकी है नक्सली या कहे अपराधी अब सिर्फ लेवी वसूलना चाहते है ।  छोटे-छोटे संगठन अपने  को मजबूत करने और लोगो को जोड़ने के लिए पैसा चाहते है ,और इसके लिए लेवी ही सबसे सहज और सटीक माध्यम हैं । इसलिए इनका मुख्य उद्देश्य यही रहता है कि ज्यादा से ज्यादा कंपनियों से लेवी वसूल जाए ।  इसके लिए नक्सली “भय” को अपना सबसे बड़ा हथियार मानते हैं । खबर तो यह भी है कि विस्थापितों के नाम पर जाने वाला बड़ा पैसा नक्सलियों तक पहुंचता है। विस्थापितों का तो सिर्फ  नाम ही इस्तेमाल किया जाता है।
 डर के साये में उद्योग
नक्सली धमकी ने एक बार फिर झारखंड के कोयला उद्योग को दहशत में डाल दिया है। डकरा, केडीएच, और पुरनाडीह के कांटाघरों का बंद होना सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि नक्सलवाद की उस गहरी जड़ का प्रतीक है, जो विकास की राह में रोड़ा बनी हुई है। प्रशासन और पुलिस को त्वरित कार्रवाई करनी होगी, ताकि कर्मचारियों का भरोसा बहाल हो और कोयला उद्योग फिर से पटरी पर लौट सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share via