विनम्रता, समझदारी और शिष्यत्व के जीवंत प्रतिमान थे इन्द्रभूति गौतम.
सिमडेगा, शंभू कुमार सिंह/विनीत मित्तल.
सिमडेगा : जैन भवन में डॉ. पद्मराज जी महाराज ने तप एवं मौन सहित तीन दिनों की दीपावली-साधना पूर्ण करके आज भक्तों को दर्शन दिए। उन्होंने विभिन्न मन्त्रों का उच्चारण करते हुए महामंगलपाठ सुनाया। साथ ही क्षेत्र वासियों को दीपावली पर्व की बधाई दी। इससे पूर्व गुरुमां ने गुरुदेव की तपस्या और साधना का परिचय देते हुए गुणगान किया। साथ ही गुरुमां ने प्रासंगिक भजनों के द्वारा सबको भक्तिरस कि थारा मे भक्तो को गोते लगवाये। डॉ. पद्मराज जी महाराज ने अभिमंत्रित केसर का तिलक करते हुए भक्तों को अभिमन्त्रित प्रसाद प्रदान किया।
उन्होंने गोवर्धन पूजा सहित गौतम प्रतिपदा त्यौहार की विवेचना करते हुए बताया कि ईसापूर्व 527 की दीपावली के मध्यरात में तीर्थंकर महावीर प्रभु का निर्वाण हो गया। इसे एक युग का समापन मानकर नए सम्वत के रूप में “वीर निर्वाण सम्वत” प्रारम्भ हुआ। आज से इस सम्वत का 2547 वां वर्ष प्रारम्भ हो रहा है। आप सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।
महाराज जी ने बताया कि कुछ वर्ष पहले तक ग्रीटिंग कार्ड्स में दीपावली के साथ-साथ नववर्ष की भी बधाई अंकित होती थी। वह इसी सम्वत के लिए है। तीर्थंकर महावीर ने पंच महाव्रतों (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) की शिक्षा के साथ सप्त कुव्यसन त्याग, अनेकान्तवाद, कर्मवाद आदि के द्वारा जनमानस को स्वनिर्भर होकर अपना विकास करने की महत्वपूर्ण प्रेरणा प्रदान किया था। उनका समग्र जीवन, जीव और जगत के कल्याणार्थ समर्पित रहा।
स्वामी जी ने कहा एक प्रकार से दीपावली का त्यौहार व्यापारी वर्ग अर्थात वैश्य वर्ण का त्यौहार है। वैश्य समाज की आराध्या देवी माता लक्ष्मी हैं, इसलिए इस पर्व में विशेष रूप से माता लक्ष्मी की आराधना, उपासना की प्रवृत्ति है। उनके साथ ही आरोग्य के लिए धन्वन्तरी देव, धन की रक्षा के लिए कुबेर देव और अकालमृत्यु के निवारण के लिए यमराज की भी उपासना की जाती है।
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गौतम प्रतिपदा और गोवर्धन पूजा के रूप में जाना जाता है। गणधर इंद्रभूति गौतम के नाम पर इसका नाम गौतम प्रतिपदा हुआ है। इस दिन उनकी कथा विशेष रूप से सुनी जाती है। भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्र के कोप से स्थानीय जनता की रक्षा करने के कारण गोवर्धन पूजा का पर्व अस्तित्व में आया है। इंद्रभूति गौतम तीर्थंकर महावीर के प्रमुख शिष्य और गणधर थे। उन्होंने भगवान को छोड़कर मिलने वाले केवलज्ञान के प्रस्ताव को ठुकराकर शिष्यत्व का आदर्श प्रस्तुत किया था। वे वेदादि के ज्ञाता प्रसिद्ध विप्र थे। उनकी गुणग्राहक दृष्टि ने महावीर के भीतर उस महावीरत्व को देखा जिसे विरले लोग ही देख पाते हैं। वे भगवान के ऐसे विरले शिष्य थे जो चार ज्ञान के धनी होकर भी प्रभु के आगे बालकवत जिज्ञासु बने रहे। वे शिष्यत्व और विनम्रता के जीवंत प्रतिमान थे। उनकी अगणित विशेषताओं में एक थी समझदारी। वे प्रत्येक स्थिति का सामना इतनी समझदारी से करते थे कि कभी कोई समस्या ठहर ही नहीं पाती थी। महावीर निर्वाण के बाद अत्यंत विह्वल बने हुए गौतम स्वामी को हस्तिपाल राजा ने ढाढस दिया और गौतम स्वामी अध्यात्म के सोपान चढ़ते गए। प्रतिपदा का सूर्योदय होते-होते उन्होंने “केवलज्ञान” प्राप्त कर लिया। चतुर्विध संघ को एक तरफ महावीर निर्वाण का कष्ट था तो दूसरी और गौतम प्रभु के कैवल्य प्राप्ति का आनन्द। एक साथ लोगों ने खुशी और गम का अनुभव किया। इस नए वर्ष के प्रथम दिन को लड्डू बाँटकर सबने खुशियां मनाई।
गोवर्धन पूजा के सम्बंध में गुरुजी ने बताया कि इंद्रदेव लोगों को डराकर अपनी पूजा करवा रहे थे। मन्दिरों से भगवान विष्णु की प्रतिमा हटाकर इंद्र की प्रतिमा लगादी गई थी। यह सब देखकर भगवान श्रीकृष्ण जी ने जनता को सत्य का बोध कराया और इंद्र को दण्डित किआ। क्रोधाविष्ट इंद्र ने मूसलाधार वर्षा अनवरत जारी रखा जिससे पूरा प्रदेश जलमग्न हो गया। मनुष्य और पशु जल में डूबने लगे। भगवान ने सबको गोवर्धन पर्वत पर ले जाकर, उंगली में पर्वत को उठा लिया और उसकी सहायता से सबके प्राणों की रक्षा की। इसी स्मृति में आज गोवर्धन पर्वत की पूजा का प्रचलन है। कतिपय क्षेत्रों में आज गाय त्यौहार के रूप में पशुओं की पूजा अर्चना भी की जाती है। पंच वर्णी दीपावली पर्व का यह चतुर्थ दिन है। पंचम दिन भाई दूज के साथ इस त्यौहार का समापन हो जाता है। मौके पर बड़ी संख्या भक्तों ने गुरु का आशीर्वाद लिया।