विशेष : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रीलंका यात्रा और इसके मायने
बैंकॉक में हुए बिम्सटेक शिखर सम्मलेन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीलंका के दौरे पर है मोदी की श्रीलंका यात्रा, जो चार से छह अप्रैल तक है, यह यात्रा कई स्तरों पर अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह दौरा भारत और श्रीलंका के बीच संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने ,क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने, और दोनों देशों के साझा हितों को मजबूत करने का एक सुनहरा अवसर है। आइए, इसके महत्व को विस्तार से समझते हैं:
1. द्विपक्षीय संबंधों में नया अध्याय
मोदी का यह दौरा श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के कार्यकाल में किसी विदेशी नेता की पहली आधिकारिक यात्रा है। दिसानायके ने पिछले साल दिसंबर 2024 में भारत का दौरा किया था, और अब मोदी की यात्रा से दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास और सहयोग में निरंतरता दिखती है। इस यात्रा के दौरान कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर होने की संभावना है, जिसमें रक्षा, ऊर्जा, डिजिटल कनेक्टिविटी, और व्यापार जैसे क्षेत्र शामिल हैं। खास तौर पर एक ऐतिहासिक रक्षा समझौता चर्चा में है, जो दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग को बढ़ाएगा। यह हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की “सागर” (Security and Growth for All in the Region) नीति को भी मजबूत करेगा।
2. सामरिक महत्व और हिंद महासागर में संतुलन
हिंद महासागर क्षेत्र में श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति इसे सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण बनाती है। पिछले कुछ वर्षों में चीन ने श्रीलंका में अपनी उपस्थिति बढ़ाई है, खासकर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत हम्बनटोटा बंदरगाह जैसे प्रोजेक्ट्स के जरिए। भारत के लिए यह जरूरी है कि वह अपने पड़ोसी देश के साथ मजबूत रिश्ते बनाए रखे ताकि क्षेत्र में शक्ति संतुलन बना रहे। मोदी की यह यात्रा इस दिशा में एक ठोस कदम है। रक्षा सहयोग के अलावा, समुद्री सुरक्षा और खुफिया जानकारी साझा करने जैसे मुद्दों पर भी चर्चा होगी, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिए अहम है।
3. आर्थिक सहयोग और श्रीलंका का पुनरुत्थान
श्रीलंका हाल के वर्षों में गंभीर आर्थिक संकट से गुजरा है, और भारत ने इस दौरान उसकी मदद के लिए करीब 4 बिलियन डॉलर की सहायता दी है। मोदी की यात्रा में संपूर सौर ऊर्जा संयंत्र जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन और अन्य विकास परियोजनाओं की शुरुआत होने की उम्मीद है। ये प्रोजेक्ट्स न केवल श्रीलंका की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेंगे, बल्कि उसकी अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में भी मदद करेंगे। इसके अलावा, दोनों देशों के बीच डिजिटल भुगतान सिस्टम (जैसे UPI) को लागू करने पर भी बातचीत होगी, जो व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा देगा। यह श्रीलंका के लिए भारत की “नेबरहुड फर्स्ट” नीति का एक और उदाहरण है।
4. मछुआरों का मुद्दा और जनता से जनता के रिश्ते
भारत और श्रीलंका के बीच मछुआरों का मुद्दा लंबे समय से एक विवाद का विषय रहा है। तमिलनाडु के मछुआरे अक्सर श्रीलंकाई जल सीमा में मछली पकड़ते हुए पकड़े जाते हैं, जिससे तनाव पैदा होता है। इस यात्रा में इस संवेदनशील मुद्दे पर सकारात्मक चर्चा की उम्मीद है, जिससे दोनों देशों के मछुआरों के लिए कोई स्थायी समाधान निकल सके। यह जनता से जनता के रिश्तों को बेहतर करने में भी मदद करेगा।
5. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जुड़ाव
भारत और श्रीलंका के बीच बौद्ध धर्म और प्राचीन सभ्यताओं से जुड़ा एक गहरा सांस्कृतिक रिश्ता है। मोदी की यह यात्रा (2015 के बाद उनकी चौथी श्रीलंका यात्रा) इस ऐतिहासिक जुड़ाव को और मजबूत करेगी। वह कोलंबो में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा ले सकते हैं और तमिल समुदाय के साथ भी संवाद कर सकते हैं, जो दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक सेतु को और प्रगाढ़ करेगा।
6. क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव
यह यात्रा सिर्फ भारत और श्रीलंका तक सीमित नहीं है; इसका प्रभाव पूरे दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र पर पड़ेगा। यह भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और श्रीलंका के साथ मजबूत साझेदारी को वैश्विक मंचों जैसे संयुक्त राष्ट्र में भी समर्थन दिला सकता है। साथ ही, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास जैसे वैश्विक मुद्दों पर दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ेगा।
कुल मिलाकर, मोदी की श्रीलंका यात्रा सामरिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद अहम है। यह दोनों देशों के बीच विश्वास को गहरा करने, श्रीलंका के विकास में योगदान देने, और हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की स्थिति को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। यह दौरा न केवल द्विपक्षीय संबंधों को नई दिशा देगा, बल्कि क्षेत्रीय शांति और समृद्धि के लिए भी एक मिसाल कायम करेगा।