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Ranchi News:-झारखंड में कुप्रथा के खिलाफ जंग:जिन्हें डायन बताकर प्रताड़ित किया, उन्हें गरिमा देने की मुहिम

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प्रेरणा चौरसिया

Drishti  Now  Ranchi

झारखंड के एक गांव में कुछ लोग एक महिला को घर में लेकर गए और उसके साथ जमकर मारपीट की। फिर उसे गांव भर में घुमाया गया। कुछ लोगों ने विरोध किया तो बताया गया कि ये महिला चुड़ैल है। कानून और अन्य पहलों के बावजूद देश में कुछ जगहों पर अंधविश्वास आधारित इस तरह की कुप्रथाएं खत्म नहीं हो सकी हैं।

फसल खराब हो, कुआं सूखे या कोई बीमार पड़े… इन सबके लिए गांववासी महिलाओं को दोषी ठहराते हैं, यानी जिस भी बुरी घटना का कारण वे नहीं समझते, उसके लिए महिलाओं को ही लक्षित करते हैं। अंधविश्वास को हथियार बनाकर महिलाओं को प्रताड़ित करने की इन्हीं कुप्रथाओं से निपटने के लिए छुटनी महतो दिन-रात जुटी हैं। छुटनी बीरबांस गांव में रहती हैं।

12 साल की उम्र में उनका ब्याह महताडीह गांव में धनंजय महतो से हुआ। सितंबर 1995 को उसके पड़ोसी की बेटी बीमार हो गई थी। लोगों ने शक जताया कि छुटनी ने ही कोई टोना-टोटका कर दिया है। पंचायत में छुटनी को डायन करार दिया गया। लोगों ने उनके साथ मारपीट की। इसके बाद उन पर 500 रुपए जुर्माना लगाया गया। किसी तरह छुटनी ने जुर्माना भरा, पर ग्रामीणों का गुस्सा कम नहीं हुआ।

लेकिन छुटनी ने हिम्मत नहीं हारी। वे बीरबांस स्थित मायके में ही रहने लगीं। यहीं रहकर छुटनी ने 1995 से डायन प्रथा के खिलाफ लड़ाई शुरू की, अब तक वे 200 से ज्यादा महिलाओं को प्रताड़ना से बचाकर पुनर्वास कराने में सफल रही हैं। अब रिहैबिलिटेशन सेंटर चलाती हैं। उन्हें इस काम के लिए 2021 में पद्मश्री सम्मान दिया गया था।

इधर झारखंड ने इस गलत प्रथा से निपटने की कोशिश में एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया है। इसके लिए राज्य प्रोजेक्ट गरिमा नामक कार्यक्रम शुरू किया गया है। आदिवासी जिले गुमला के उपायुक्त सुशांत गौरव बताते हैं,‘इसका उद्देश्य महिलाओं को डायन बताने की बुरी प्रथा को खत्म करना और बचे लोगों का पुनर्वास करना है। इसके तहत 25 ‘विच-हंटिंग प्रिवेंशन कैंपेन दलों’ को तैनात किया गया है। ये दल जागरूकता बढ़ाने के लिए नुक्कड़ नाटक करते हैं। इनसे जुड़ी ग्राम-स्तरीय सुरक्षा समितियां हिंसा से बचे लोगों की मदद करती हैं। पीड़ितों के लिए कानूनी सहायता और और उनके रहने की अस्थाई व्यवस्था के लिए केंद्र स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा हेल्प डेस्क पर कार्यरत कर्मचारी पीड़ितों की मनोवैज्ञानिक व आर्थिक स्थिति की जानकारी लेने के लिए उन्हें सीधे कॉल करते हैं।’

इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य बोकारो, गुमला, खूंटी, लोहरदगा, सिमडेगा, पश्चिमी सिंहभूम और लातेहार जिलों में 25 चयनित ब्लॉकों में 342 ग्राम पंचायतों के उन 2,068 गांवों तक पहुंचना है, जहां ऐसी घटनाओं की सूचना मिलती है।

विशेष अभियान चलाए जा रहे: गुमला जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर चैनपुर में जादू-टोने के शिकार लोग गरिमा केंद्र में इकट्ठा होते हैं, जहां वे पिछले अनुभवों से उबरने के लिए परामर्श लेते हैं। कौशल विकास मंत्रालय के महात्मा गांधी नेशनल फेलो अविनाश कुमार कहते हैं,‘जिले में 253 लोगों को मनोवैज्ञानिक परामर्श दिया गया है, जबकि 385 को स्वयं सहायता समूहों के साथ नामांकित किया गया है।’

गुमला जिला समाज कल्याण अधिकारी सीता पुष्पा बताती हैं, ‘खतरे से लड़ने के लिए, जिला कानूनी सेवा अधिकारियों के सहयोग से जिले की 13 पंचायतों में विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं। पंचायतों में क्लीनिक स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा चैनपुर ब्लॉक में पैरालीगल कार्यकर्ता के रूप में काम करने वाली रिंकी देवी कहती हैं कि धीरे-धीरे स्थानीय पुलिस ने इस खतरे से निपटने में उनकी मदद करना शुरू कर दिया है। इससे इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वालों के हौंसले पस्त हुए हैं।

 

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