DAMPING KA KHEL

डम्पिंग की आड़ में बालू का अवैध कारोबार ! रांची के आस – पास के इलाको में फल फूल रहा है यह गोरखधंधा !

झारखंड में बालू कैसे बना सोना, सारी प्रक्रिया जानने से पहले हम आपको डम्पिंग का खेल बताते है की कैसे डम्पिंग की आड़ में बालू का अवैध कारोबार होता है
झारखंड में 5000 रुपये प्रति गाड़ी बालू की कीमत,45 हज़ार रूपये हो जाती है चंद किलोमीटर के सफर के बाद
..यह छोटी सी बानगी है राज्य में बालू के सोना बनने के सफर का………..
सवाल यह है कि आखिर इस खेल के पीछे का खेल क्या है?
सरकारी प्रक्रिया के बीच खेल—
सरकारी प्रक्रिया में बालू की डंपिंग एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। चाहे बरसात के चार माह में बालू उठाव की बात हो, या फिर बुकिंग के माध्यम से बालू उठाव होना , दोनों ही मामलों में बालू की डंपिंग जरूरी है । लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बालू की डंपिंग आपको दिखे या न दिखे बालू का खेल अनवरत जारी है।

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जब रांची के घाटों की हमने जानकारी ली तो सोनाहातू स्थित एक जगह ऐसा मिला जहां प्रकाश हेतमसरिया नाम के व्यक्ति की बालू की डंपिंग की गई है।लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि जो बालू यहां डंप किया गया है वह खपत के हिसाब से एक दिन का भी नहीं है । जाहिर सी बात है यह सिर्फ आई वाश है।और इसी की आड़ में बालू न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि जमशेदपुर तक भेजा जाता है। यानी बालू डंपिंग की आड़ में बालू का खेल लगातार जारी है। यह तो सिर्फ एक डम्पिंग का खेल हमने आपको बताया जबकि ऐसे दर्जनों स्थान पर डम्पिंग का खेल बदस्तूर जारी है

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सीधी सी बात है राज्य में फैले हुए 444 घाटों में से मात्र 31 घाटों से ही वैध तरीके से बालू का उठाव एक महत्वपूर्ण कारण तो है ही ….दूसरा और अहम कारण बालू के डंपिंग को लेकर है।इसके तह में जाने से पहले हमें यह जानना होगा कि बालू के उठाव के लिये सरकारी प्रकिया क्या है?
झारखंड में बालू की बिक्री की प्रक्रिया मुख्य रूप से झारखंड राज्य खनिज विकास निगम लिमिटेड (JSMDC) के माध्यम से संचालित होती है। यह प्रक्रिया राज्य सरकार की नीतियों, झारखंड बालू खनन नीति-2017, और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के दिशानिर्देशों के आधार पर चलती है।

प्रक्रिया—

1. बालू घाटों की पहचान और नीलामी
झारखंड में बालू के खनन के लिए नदी घाटों को चिह्नित किया जाता है। डिस्ट्रिक्ट सर्वे रिपोर्ट (DSR) के आधार पर राज्य में लगभग 444 बालू घाट श्रेणी-2 के तहत चिह्नित हैं।
इन घाटों का संचालन और प्रबंधन JSMDC द्वारा किया जाता है। बड़े घाटों की नीलामी टेंडर प्रक्रिया के जरिए होती है, जिसमें माइंस डेवलपमेंट ऑपरेटर (MDO) नियुक्त किए जाते हैं।
छोटे घाटों का संचालन स्थानीय स्तर पर पंचायतों या मुखियाओं को सौंपा जा सकता है, जैसा कि कुछ जिलों (जैसे खूंटी) में देखा गया है।

2. पर्यावरण स्वीकृति और नियम-
बालू खनन शुरू करने से पहले पर्यावरण स्वीकृति (Environmental Clearance – EC), कंसेंट टू एस्टेब्लिश (CTE), और कंसेंट टू ऑपरेट (CTO) जैसे अनुमोदन जरूरी हैं। ये स्वीकृतियां राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण (SEIAA) से ली जाती हैं।

NGT के नियमों के अनुसार, मानसून के दौरान (10 जून से 15 अक्टूबर तक) नदियों से बालू का उठाव प्रतिबंधित रहता है।
इस दौरान स्टॉक यार्ड से बालू की आपूर्ति की जाती है।

3. ऑनलाइन बुकिंग और बिक्री–
JSMDC ने बालू की बिक्री के लिए ऑनलाइन प्रणाली शुरू की है। आम लोग या व्यवसायी JSMDC की आधिकारिक वेबसाइट (www.jsmdc.in) पर जाकर यूजर आईडी बनाकर बालू बुक कर सकते हैं।

इसके लिए प्रक्रिया–
वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन कर यूजर आईडी बनाएं।
ऑनलाइन सैंड बुकिंग विकल्प चुनें।
आवश्यक मात्रा (अधिकतम 4000 सीएफटी प्रति व्यक्ति) और स्टॉक यार्ड का चयन करें।
भुगतान करें (लगभग 7.87 रुपये प्रति सीएफटी, जीएसटी सहित)।
भुगतान के बाद चालान मिलता है, जिसके आधार पर स्टॉक यार्ड से बालू लिया जा सकता है।

परिवहन की जिम्मेदारी खरीदार की होती है, जिसके लिए उन्हें स्वयं वाहन की व्यवस्था करनी पड़ती है।

4. नि:शुल्क बालू योजना
इसके लिए आवेदन जिला खनन कार्यालय या JSMDC पोर्टल के जरिए करना होता था। स्वीकृति के बाद लाभार्थी को रसीद दी जाती थी, जिसके आधार पर वे स्टॉक यार्ड से बालू ले सकते थे।

 

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