कब आएंगे वो पंद्रह दिन ? अवैध बालू तस्करी पर हमारी विशेष रिपोर्ट
दिन – 8 मार्च 2022
स्थान झारखंड विधान सभा
सवाल–सिल्ली विधायक सुदेश महतो
सवाल ..माननीय अध्यक्ष महोदय , अभी जो बालू का उठाव हो रहा है वह वैध नहीं है अभी 600 घाटों में मात्र 22 की नीलामी हुई है । सरकार बताएं कि बालू घाट किस माफिया के हाथों में चली गई है । विधानसभा की कमेटी बनाकर इसकी जांच करा ली जाए।
इस पर प्रभारी मंत्री बादल पत्र लेख ने कहा कि सरकार 15 दिनों में बालू घाटों की नीलामी प्रक्रिया पूरी कर लेगी। इसके लिए विज्ञापन प्रकाशित करने का निर्देश दिया गया है । इसके लिए राज्य के सभी उपायुक्त को निर्देश भी दे दिया गया है
आप सोच रहे होंगे कि हम आखिर 2022 की बात क्यों कर रहे हैं ।दरअसल सवाल यह है कि विधानसभा में सरकार की ओर से 15 दिनो के भीतर बालू घाटों की नीलामी को लेकर सारी प्रक्रिया पूर्ण होने की बात की गई थी क्या वह पूरी हुई? आखिर वह 15 दिन कब आएंगे? कब बालू घाटों की नीलामी होगी ?क्या हेमंत सरकार पार्ट टू बालू घाटों की नीलामी करवाएगी ?क्योंकि बालू घाटों की नीलामी अभी तक नहीं हो पाने की वजह से इसका अवैध खनन और अवैध व्यापार धड़ल्ले से जारी है। इसकी वजह से न केवल सरकारी खजाने को भारी नुक्सान हो रहा है बल्कि पर्यावरण पर भी विपरीत असर देखने को मिल रहा है। आम जनता को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।
पूरे राज्य को छोड़ बात सिर्फ यदि रांची की करें तो यहां बालू का अवैध कारोबार करीबन 1000 करोड रुपए से ज्यादा प्रति वर्ष का है। फिलहाल 20000 रुपये में मिलने वाला बालू 40 हजार से 45000 रुपए में मिल रहा है
दूसरी ओर राज्य के ठेकेदार भी खासे परेशान नजर आ रहे हैं क्योंकि उन्हें जो वर्क आर्डर दिया जाता है उस पर बालू की कीमत सरकार तय करती है जो बालू घाटों के नीलामी के समय हुआ करता था। ऐसे में ठेकेदार भी बालू की जगह कई जगह पर पत्थर का डस्ट उपयोग करने लगे हैं जिससे निर्माण की गुणवत्ता में काफी गिरावट आ गई है
आखिर कब आएंगे वह 15 दिन सरकार से पूछता है हर आम आदमी
झारखंड विधानसभा 2025 के छठे सत्र में भी विधायक बालू का मुद्दा उठाते दिखे । खुद मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए कहा कि बालू का अवैध कारोबार नहीं होने देंगे । ऐसे में सवाल यह है कि बालू का अवैध कारोबार हो कैसे रहा है ? सरकार को , सिस्टम को, प्रशासन को, वन विभाग को, खनन विभाग को ,स्थानीय विधायक को ,स्थानीय जनप्रतिनिधि जिला परिषद के सदस्य तक को मालूम है कि बालू का अवैध कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है ।तो फिर आखिर यह बालू का अवैध कारोबार रुकता क्यों नहीं ? आइए इन सब बातों को हम समझते हैं
इन सबके पीछे है कमीशन की मोटी रकम और बिचौलियों के कंधे पर खाकी,खादी,खनन विभाग, वन विभाग और पत्रकारों के वरद हस्त…..
रांची और इसके आसपास के इलाकों में अवैध बालू खनन का कारोबार खुलेआम फल-फूल रहा है। सिल्ली, सोनाहातू और बुंडू के बालू घाटों से शुरू होकर यह गोरखधंधा रांची शहर तक पहुँच रहा है।, जहाँ बालू माफिया मनमाने दामों पर बालू बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। इस अवैध कारोबार की जानकारी जिला प्रशासन, खनन कार्यालय, वन विभाग, पुलिस और यहाँ तक कि राजनीतिक दलों के नेताओं को भी है, लेकिन कोई भी इस पर रोक लगाने को तैयार नहीं दिखता। सूत्रों का दावा है कि इस धंधे में शामिल हर स्तर पर कमीशन का खेल चल रहा है, जिसके चलते यह अवैध कारोबार निर्विरोध जारी है।
अवैध खनन का केंद्र: सिल्ली, सोनाहातू और बुंडू
के 17 छोटे-बड़े बालू घाटों से हर रात अवैध रूप से बालू का उठाव हो रहा है। रांची जिले के कुल 17 बालू घाटों में से केवल तीन—सुंडील, श्यामनगर और चोकेसोरेंग—वैध रूप से चालू हैं, जहाँ झारखंड स्टेट मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (JSMDC) के माध्यम से बालू का उठाव होता है। शेष 14 घाट बंद होने के बावजूद अवैध खनन का प्रमुख हब बना हुआ है।
कमीशन का जाल: ऊपर से नीचे तक बंटता है पैसा..
इस अवैध कारोबार का सबसे चौंकाने वाला पहलू कमीशन का ढांचा है, जो घाट से लेकर शहर तक फैला हुआ है।
शामिल लोग और सिस्टम की चुप्पी
सूत्रों के अनुसार, इस कारोबार में कई प्रभावशाली लोग शामिल हैं। यहाँ तक कि विधायक, पूर्व विधायक, वन विभाग, खनन विभाग, जिला प्रशासन और पुलिस तक इस खेल में शामिल बताए जा रहे हैं। रात में हाइवा की गिनती करने वाले एजेंट भी नियुक्त हैं, जो सिस्टम को सुचारू रखते हैं।
नियमों की अनदेखी और खतरे
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, सोनाहातू में बालू डंप के लिए केवल दो लाइसेंस जारी किए गए हैं, लेकिन रात के अंधेरे में सिल्ली-सोनाहातू के रास्तों पर अवैध बालू से लदे हाइवा आसानी से देखे जा सकते हैं। ये हाइवा चालक तेज गति और लापरवाही से वाहन चलाते हैं,
प्रभावित क्षेत्र और घाट
अवैध खनन के प्रमुख घाटों में झाबड़ी, सोनाहातू, बिरदीडीह, जरेया, सोमाडीह, गोमियाडीह, डोमाडीह, गड़ाडीह, भकुआडीह, बांधडीह, श्यामनगर, सुंडी, हजाम, जयनगर, पतराहातु, पोबरा और बसंतपुर शामिल हैं। इन घाटों से होने वाला खनन नदियों और पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचा रहा है।
ये सारी बाते रांची में अवैध बालू खनन के काले कारोबार की गहरी सच्चाई को उजागर करती है। कमीशन का जाल इतना मजबूत है कि हर स्तर पर सिस्टम इसके आगे नतमस्तक दिखता है। सवाल यह है कि क्या इस धंधे पर कभी लगाम लगेगी, या यह यूँ ही जनता बालू के काले खेल में लुटती रहेगी?
अगले अंक में पढ़े सरकार के नियम और उसका बालू माफियाओं पर असर