रांची में बालू माफियाओं का आतंक, पत्रकार विजय गोप पर हमला: पुलिस की कार्यशैली पर सवाल
रांची : रिक्की राज
रांची, : राजधानी रांची में अवैध बालू माफियाओं के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं। 2 जून की रात पत्रकार विजय गोप पर हुए हमले ने न केवल माफियाओं की दबंगई को उजागर किया है, बल्कि पुलिस की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इस घटना ने अवैध बालू खनन के खिलाफ कार्रवाई में पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता को फिर से चर्चा में ला दिया है।
इसी गाड़ी से उतरकर बालू माफियाओं ने विजय गोप पर हमला किया
घटना का विवरण
विजय गोप के अनुसार ग्रामीणों ने सूचित किया था कि पिठोरिया चौक से रांची जाने वाले रास्ते पर अवैध बालू लदा हाइवा रोका गया है। खबर कवर करने पहुंचे विजय गोप और उनके साथी पत्रकार को बालू माफियाओं ने घेर लिया। गुलफान (पिता: कलम, ग्राम: हपुवा, रामगढ़), प्रवीण (चटकपूर), सामी अंसारी (नगड़ी) और 10-12 अन्य लोगों ने उन पर हमला किया। माफियाओं ने अशब्दों का इस्तेमाल करते हुए मारपीट की, उनकी शर्ट फाड़ दी और मोबाइल छीन लिया, जिससे वे घटना की रिकॉर्डिंग कर रहे थे। ग्रामीणों के हस्तक्षेप से विजय गोप की जान बची। पुलिस की कार्यशैली पर सवाल
इस घटना ने रांची में अवैध बालू खनन के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई की प्रभावशीलता पर सवाल उठाए हैं। झारखंड में बालू माफियाओं का नेटवर्क लंबे समय से सक्रिय है, और पुलिस की निष्क्रियता के कारण उनकी गतिविधियां बेरोकटोक चल रही हैं।
बीच रिंग रोड और हाईवे पर इस तरह बालू की अवैध लदीगाड़ियों का चलना पुलिस की सुस्ती और माफियाओं के प्रति नरम रवैये को दर्शाती है। साथ ही साथ कहीं ना कहीं यह भी दर्शाता है कि बालू माफियाओं के साथ पुलिसिया घर जोड़ के बिना यह अवैध बालू का धंधा नहीं चल सकता । स्थानीय ग्रामीणों का भी आरोप है कि पुलिस की मिलीभगत के बिना इतने बड़े पैमाने पर अवैध खनन संभव नहीं है। कई थाना से गुजरते हुए अवैध बालू लदा ट्रक गुजरता है लेकिन पुलिस की आंखें बंद रहती है जिससे पुलिस की विश्वसनीयता पर और सवाल उठते हैं। पत्रकारों की सुरक्षा खतरे में
पत्रकार विजय गोप पर हमला न केवल प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि माफिया पत्रकारों को डराने-धमकाने से नहीं हिचक रहे। झारखंड में पहले भी पुलिस और खनन विभाग की टीमों पर बालू माफियाओं के हमले की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। फिर भी, ऐसी घटनाओं के बाद त्वरित कार्रवाई का अभाव माफियाओं को और प्रोत्साहित करता है।
ग्रामीणों की शिकायत और माफियाओं का दबदबा
ग्रामीणों ने बताया कि बालू की किल्लत के कारण उन्होंने अवैध बालू लदे वाहन को रोका था। झारखंड में 796 बालू घाट हैं, लेकिन इनकी नीलामी नहीं हो पाई है, जिसके कारण अवैध खनन का कारोबार फल-फूल रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि माफिया हर गाड़ी मोटी कमाई करते है। जिससे प्रतिदिन लाखों की कमाई होती है। पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता के कारण ग्रामीणों को स्वयं सड़कों पर उतरकर विरोध करना पड़ रहा है।
आवश्यक है कठोर कार्रवाई
गौरतलब है की रांची पुलिस और जिला प्रशासन को इस मामले में तत्काल कार्रवाई करनी होगी, अन्यथा माफियाओं का यह दुस्साहस और बढ़ेगा, जिसका खामियाजा आम जनता और पत्रकार को भुगतना पड़ेगा।