सरायकेला में आदिवासी समुदाय का उग्र प्रदर्शन: कुड़मी को एसटी दर्जा देने की मांग का विरोध

सरायकेला में आदिवासी समुदाय का उग्र प्रदर्शन: कुड़मी को एसटी दर्जा देने की मांग का विरोध
सरायकेला-खरसावां, 13 अक्टूबर : झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड में सोमवार को आदिवासी समुदाय के सैकड़ों लोगों ने कुड़मी समाज को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल करने की मांग के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। पारंपरिक परिधान और हरवे-हथियारों के साथ प्रखंड कार्यालय पहुंचे प्रदर्शनकारियों ने “कुड़मी को एसटी सूची में शामिल करना बंद करो” और “आदिवासी अधिकारों की रक्षा करो” जैसे नारों के साथ अपनी नाराजगी जाहिर की। यह प्रदर्शन पूरे झारखंड में आदिवासी संगठनों के बढ़ते आक्रोश का हिस्सा है, जो कुड़मी समुदाय को आदिवासी दर्जा देने को अपने अधिकारों और पहचान पर हमला मान रहे हैं।
प्रदर्शन का माहौल
गम्हरिया प्रखंड कार्यालय के बाहर ढोल-नगाड़ों की गूंज और पारंपरिक नारों से माहौल गूंज उठा। प्रदर्शन में गांवों के मुखिया, महिला मंडल, युवा संगठन और विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में शामिल हुए। आदिवासी नेताओं ने स्पष्ट किया कि यह विरोध किसी समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि उनकी हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति, भाषा, परंपरा और अधिकारों की रक्षा के लिए है।प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि कुछ संगठन राजनीतिक लाभ के लिए कुड़मी समुदाय को आदिवासी घोषित करने की साजिश रच रहे हैं, जो वास्तविक आदिवासी समुदायों के लिए खतरा है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि केंद्र या राज्य सरकार ने कुड़मी समाज को एसटी सूची में शामिल करने का प्रयास किया, तो आदिवासी समुदाय बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करेगा।
ज्ञापन सौंपा, मिला आश्वासन
प्रदर्शन के दौरान आदिवासी प्रतिनिधियों ने प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ) और अंचल अधिकारी (सीओ) को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें कुड़मी समुदाय को एसटी दर्जा देने के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज की गई। सीओ ने प्रदर्शनकारियों से मुलाकात की और आश्वासन दिया कि उनकी मांगों को जिला प्रशासन के माध्यम से राज्य सरकार तक पहुंचाया जाएगा। उन्होंने शांति और व्यवस्था बनाए रखने की अपील भी की।
विवाद की पृष्ठभूमि
कुड़मी समुदाय, जो मुख्य रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की श्रेणी में आता है, लंबे समय से झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में एसटी दर्जा और अपनी भाषा ‘कुड़माली’ को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रहा है। इस मांग को लेकर हाल के महीनों में रेल रोको और रास्ता रोको जैसे आंदोलन हुए हैं। दूसरी ओर, आदिवासी संगठन इसे अपने अधिकारों पर अतिक्रमण मानते हैं और कहते हैं कि कुड़मी समुदाय की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि आदिवासियों से अलग है।
आदिवासी नेताओं का बयान
एक आदिवासी नेता ने कहा, “हमारी लड़ाई अपनी पहचान और हक की रक्षा के लिए है। आदिवासी समाज ने हजारों वर्षों तक अपनी संस्कृति और परंपराओं को संजोया है। इसे कोई कानून या राजनीतिक निर्णय नहीं छीन सकता।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि आदिवासी संगठन किसी भी परिस्थिति में कुड़मी समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने की अनुमति नहीं देंगे।





