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क्या BJP और AIADMK का गठबंधन तमिलनाडू विधानसभा चुनाव में गेम चेंजर साबित होगा ?

तमिलनाडू में बीजेपी और AIADMK एक बार फिर से दोस्त की भूमिका में नजर आएंगे।जाहिर सी बात है आगामी 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर यह एक बड़ा फैसला है।
ऐसे में स्वालबयः है कि क्या यह गठबंधन आगामी विधानसभा चुनाव में एक गेम चेंजर की भूमिका में होगा?

एआईएडीएमके का बीजेपी के साथ गठबंधन तमिलनाडु के चुनावों में महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है, लेकिन यह गेम चेंजर होगा या नहीं, यह कई कारकों पर निर्भर करता है। तमिलनाडु की राजनीति में डीएमके और एआईएडीएमके लंबे समय से प्रमुख ताकतें रही हैं, और बीजेपी का प्रभाव अभी तक सीमित रहा है।

आइए, इसके संभावित प्रभावों को समझने की कोशिश करते हैं।

वोट शेयर का संयोजन:-
एआईएडीएमके का तमिलनाडु में मजबूत ग्रामीण आधार है, खासकर वनियार और कुछ अन्य ओबीसी समुदायों में। दूसरी ओर, बीजेपी का शहरी क्षेत्रों और कुछ विशेष समुदायों में सीमित लेकिन बढ़ता हुआ प्रभाव है। अगर दोनों दल गठबंधन करते हैं, तो उनका वोट शेयर मिलकर डीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन को चुनौती दे सकता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में, एआईएडीएमके का वोट शेयर लगभग 20% और बीजेपी का 11% था। अगर ये वोट एकजुट हो जाएं, तो यह डीएमके के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है, बशर्ते वोटों का बिखराव न हो।

पिछले प्रदर्शन का सबक:-

बीजेपी और एआईएडीएमके का गठबंधन 2019 और 2021 के चुनावों में रहा था, लेकिन यह ज्यादा सफल नहीं रहा। 2019 में गठबंधन ने केवल एक लोकसभा सीट जीती,वहीं 2021 के विधानसभा चुनाव में डीएमके ने 159 सीटों के साथ सत्ता हासिल की, जबकि गठबंधन को केवल 75 सीटें मिलीं। 2023 में दोनों दलों का गठबंधन टूट गया था, जिसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों ने अलग-अलग लड़कर कोई सीट नहीं जीती। यह दर्शाता है कि गठबंधन का सफल होना नेतृत्व, समन्वय और रणनीति पर निर्भर करता है।

डीएमके की ताकत:–

डीएमके का गठबंधन (कांग्रेस, वाम दल, वीसीके और अन्य छोटे दलों के साथ) तमिलनाडु में मजबूत स्थिति में है। 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में इसने सभी 39 सीटें जीतीं। डीएमके की संगठनात्मक ताकत, अल्पसंख्यक और दलित वोटरों का समर्थन, और एम.के. स्टालिन का नेतृत्व इसे एक कठिन प्रतिद्वंद्वी बनाता है। बीजेपी-एआईएडीएमके गठबंधन को डीएमके के इस मजबूत गठजोड़ को तोड़ने के लिए असाधारण रणनीति और एकजुटता की जरूरत होगी।

क्षेत्रीय मुद्दों का प्रभाव:-

तमिलनाडु की राजनीति में क्षेत्रीय और द्रविड़ पहचान महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बीजेपी को अक्सर “उत्तर भारतीय पार्टी” के रूप में देखा जाता है, जो द्रविड़ भावनाओं के साथ टकराव पैदा कर सकता है। अगर एआईएडीएमके बीजेपी के साथ गठबंधन करती है, तो डीएमके इसे द्रविड़ अस्मिता के खिलाफ प्रचारित कर सकती है, खासकर अल्पसंख्यक और दलित वोटरों को लुभाने के लिए। दूसरी ओर, अगर गठबंधन स्थानीय मुद्दों जैसे भाषा नीति, परिसीमन, और केंद्र-राज्य संबंधों पर एकजुट संदेश दे पाए, तो यह मतदाताओं को आकर्षित कर सकता है।

अन्य खिलाड़ियों की भूमिका:-

तमिलनाडु की राजनीति में नए खिलाड़ी, जैसे अभिनेता विजय की तमिलगा वेट्री कड़गम (टीवीके), और छोटे दल जैसे पीएमके और डीएमडीके भी प्रभाव डाल सकते हैं। अगर टीवीके या अन्य दल बीजेपी-एआईएडीएमके गठबंधन में शामिल होते हैं, तो यह उनकी ताकत बढ़ा सकता है। लेकिन अगर ये दल अलग लड़ते हैं, तो वोटों का बिखराव डीएमके के लिए फायदेमंद हो सकता है।

नेतृत्व और समन्वय:-

गठबंधन की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि दोनों दल कितनी अच्छी तरह समन्वय कर पाते हैं। 2023 में गठबंधन टूटने का एक कारण बीजेपी के तमिलनाडु अध्यक्ष के. अन्नामलाई और एआईएडीएमके नेतृत्व के बीच तनाव था। अगर गठबंधन दोबारा होता है, तो नेतृत्व के बीच विश्वास और स्पष्ट भूमिका-निर्धारण जरूरी होगा। साथ ही, एआईएडीएमके के नेता ई.के. पलानीस्वामी की गठबंधन में प्रमुख भूमिका और सीएम उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्शन भी महत्वपूर्ण होगा।

संभावित परिणाम:-

गेम चेंजर की संभावना: अगर बीजेपी और एआईएडीएमके एकजुट होकर मजबूत गठबंधन बनाते हैं, जिसमें छोटे दल भी शामिल हों, और स्थानीय मुद्दों पर प्रभावी प्रचार करते हैं, तो यह डीएमके के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है। खासकर अगर गठबंधन ग्रामीण और शहरी वोटरों को जोड़ने में सफल हो, तो यह 2026 के विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर कर सकता है।

सीमित प्रभाव की संभावना:-
अगर गठबंधन में आंतरिक मतभेद रहते हैं, या डीएमके द्रविड़ पहचान और अल्पसंख्यक वोटों को मजबूत करता है, तो गठबंधन का प्रभाव सीमित रह सकता है। बीजेपी की क्षेत्रीय स्वीकार्यता अभी भी कम है, और एआईएडीएमके का संगठनात्मक ढांचा जयललिता के निधन के बाद कमजोर हुआ है।

जाहिर है की बीजेपी-एआईएडीएमके गठबंधन में गेम चेंजर बनने की क्षमता है, लेकिन यह गारंटी नहीं है। सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि गठबंधन कितनी अच्छी तरह वोटों को एकजुट करता है, डीएमके के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए रणनीति बनाता है, और स्थानीय मुद्दों पर मतदाताओं का विश्वास जीतता है। तमिलनाडु की जटिल राजनीतिक गतिशीलता को देखते हुए, यह गठबंधन तभी निर्णायक होगा जब यह मतदाताओं की आकांक्षाओं को प्रभावी ढंग से संबोधित करेगा और डीएमके के मजबूत गठजोड़ को तोड़ने में सक्षम होगा।

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