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हिंदी विरोध ने ठाकरे बंधुओं को लाया करीब, 20 साल बाद ‘मराठी एकता’ रैली में एक मंच पर

महाराष्ट्र की राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण तब देखने को मिला जब शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) अध्यक्ष राज ठाकरे करीब दो दशकों बाद एक मंच पर नजर आए। मुंबई के वर्ली स्थित एनएससीआई डोम में आयोजित ‘मराठी विजय रैली’ में ठाकरे बंधुओं ने मराठी अस्मिता और भाषा की रक्षा के लिए एकजुटता का प्रदर्शन किया। यह रैली केंद्र और राज्य सरकार की तीन-भाषा नीति के खिलाफ विरोध के रूप में शुरू हुई थी, जिसे बाद में सरकार ने वापस ले लिया, जिसके चलते इसे ‘विजय रैली’ में बदल दिया गया।

मराठी अस्मिता की जीत का जश्न

महाराष्ट्र सरकार ने 16 अप्रैल 2025 को स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने का आदेश जारी किया था। इस फैसले का शिवसेना (यूबीटी), मनसे और अन्य क्षेत्रीय दलों ने तीव्र विरोध किया, इसे मराठी भाषा को हाशिए पर धकेलने का प्रयास करार दिया। मराठी जनता के दबाव और ठाकरे बंधुओं के आक्रामक रुख के चलते 29 जून को महायुति सरकार को यह आदेश वापस लेना पड़ा। इस जीत का जश्न मनाने के लिए 5 जुलाई को वर्ली में यह रैली आयोजित की गई, जिसमें मराठी लेखक, कवि, शिक्षक, पत्रकार और कलाकारों सहित समाज के विभिन्न वर्गों ने हिस्सा लिया।

20 साल बाद ठाकरे बंधुओं का पुनर्मिलन

उद्धव और राज ठाकरे की यह एकजुटता इसलिए भी खास है क्योंकि दोनों भाई 2005 के मलवण उपचुनाव के बाद से एक मंच पर नहीं आए थे। 2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर मनसे की स्थापना की थी, जिसके बाद दोनों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता रही। हालांकि, मराठी अस्मिता के इस मुद्दे ने दोनों को फिर से करीब ला दिया। रैली में कोई पार्टी झंडा या चुनाव चिन्ह नहीं था, केवल ‘मराठीचा आवाज’ की थीम पर आधारित महाराष्ट्र का ग्राफिक चित्र प्रदर्शित किया गया, जो इस आयोजन को गैर-राजनीतिक और मराठी एकता का प्रतीक बनाता है।

राजनीतिक समीकरणों पर नजर

रैली में उद्धव ठाकरे ने कहा, “हम हिंदी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसे जबरन थोपना स्वीकार नहीं करेंगे। मराठी जनता की एकता ने सरकार को झुकने पर मजबूर किया। यह एकता आगे भी बनी रहनी चाहिए।” वहीं, राज ठाकरे ने कहा, “मराठी लोगों की एकता के कारण यह जीत संभव हुई। अगर सरकार ने यह फैसला नहीं लिया होता, तो यह रैली संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन की तरह ऐतिहासिक होती।”

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह एकता केवल मराठी भाषा तक सीमित नहीं है, बल्कि आगामी बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) और विधानसभा चुनावों में नए समीकरण बना सकती है। हालांकि, कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) ने इस रैली से दूरी बनाए रखी। कांग्रेस नेता हर्षवर्धन सपकाल ने कहा, “हम हिंदी थोपने के खिलाफ हैं, लेकिन गैर-मराठी वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहते।”

सत्ताधारी दलों का पलटवार

सत्ताधारी बीजेपी और शिवसेना (शिंदे गुट) ने इस रैली को राजनीतिक नौटंकी करार दिया। बीजेपी सांसद नारायण राणे ने कहा, “यह एकता मराठी गौरव से कम और बीएमसी चुनावों में प्रासंगिकता बनाए रखने की रणनीति है।” वहीं, शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता गजानन कीर्तिकर ने सवाल उठाया कि जब उद्धव ठाकरे 2022 में मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने हिंदी को क्यों स्वीकार किया था?

मराठी समाज में उत्साह

रैली से पहले ठाणे में मनसे और शिवसेना (यूबीटी) कार्यकर्ताओं ने ढोल-ताशों के साथ लड्डू बांटे और कोली समाज ने ठाकरे बंधुओं की एकता के लिए विशेष पूजा-अर्चना की। रैली में मराठी साहित्यकारों, कलाकारों और शिक्षकों की मौजूदगी ने इसे सांस्कृतिक स्वाभिमान का प्रतीक बना दिया। यह आयोजन न केवल मराठी अस्मिता की जीत का उत्सव था, बल्कि ठाकरे बंधुओं की एकजुटता ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत की है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ठाकरे बंधुओं की यह एकता अस्थायी हो या स्थायी, यह महाराष्ट्र की सियासत को नई दिशा दे सकती है। खासकर बीएमसी चुनावों से पहले यह रैली शिवसेना (यूबीटी) और मनसे के लिए अपनी खोई जमीन वापस पाने का अवसर हो सकती है। मराठी अस्मिता के इस मंच ने एक बार फिर साबित कर दिया कि भाषा और संस्कृति के मुद्दे महाराष्ट्र की राजनीति में कितने प्रभावशाली हो सकते हैं।

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