कांग्रेस नेता प्रियंका वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा से ED कार्यालय में तीसरे दिन भी पूछताछ
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा भूमि घोटाले मामले में लगातार तीसरे दिन दिल्ली में ED के कार्यालय पहुंचे। झांसी से दिन ED रॉबर्ट वाड्रा से पूछताछ करेगी । जाहिर है यह मामला 2007-08 के दौरान वाड्रा की कंपनी, स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी द्वारा हरियाणा के गुरुग्राम के मानेसर-शिकोहपुर क्षेत्र में 3.5 एकड़ जमीन को 7.5 करोड़ रुपये में खरीदने और बाद में इसे रियल एस्टेट कंपनी DLF को 58 करोड़ रुपये में बेचने से संबंधित है। इस सौदे में कथित अनियमितताओं और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच ED कर रहा है।
मामले का पृष्ठभूमि और उत्पत्ति
यह विवाद पहली बार 2012 में सुर्खियों में आया जब हरियाणा के वरिष्ठ IAS अधिकारी अशोक खेमका ने इस जमीन के म्यूटेशन (स्वामित्व हस्तांतरण) को रद्द कर दिया था। खेमका ने अपने आदेश में दावा किया कि सौदे में अनियमितताएं थीं, जिसमें जमीन का मूल्यांकन और स्वामित्व हस्तांतरण प्रक्रिया शामिल थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह सौदा नियमों का उल्लंघन करते हुए किया गया था। हालांकि, खेमका के इस आदेश को गुरुग्राम के राजस्व प्रशासन ने लागू नहीं किया, जिससे मामला और जटिल हो गया। खेमका का यह कदम उस समय चर्चा में रहा जब उनकी कार्रवाई को कुछ हलकों में साहसिक माना गया, जबकि अन्य ने इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया।
ED ने इस मामले में अपनी जांच 2018 में शुरू की, जब हरियाणा पुलिस की एक प्राथमिकी (FIR) के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया गया। जांच का फोकस स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी और DLF के बीच हुए सौदे की वित्तीय लेनदेन और जमीन की कीमत में कथित असामान्य वृद्धि पर है। ED यह जांच कर रही है कि क्या इस सौदे में अवैध धन का उपयोग किया गया या क्या यह मनी लॉन्ड्रिंग का मामला है।
सौदे का विवरण
खरीद: 2007-08 में, स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने मानेसर-शिकोहपुर में 3.5 एकड़ जमीन को 7.5 करोड़ रुपये में खरीदा।
बिक्री: इसके बाद, इस जमीन को DLF को 58 करोड़ रुपये में बेच दिया गया, जिससे सौदे में भारी मुनाफे का दावा किया गया।
विवाद का बिंदु: सौदे की अवधि में जमीन की कीमत में इतनी तेज वृद्धि और स्वामित्व हस्तांतरण की प्रक्रिया पर सवाल उठे। इसके अलावा, यह भी जांच का विषय है कि क्या इस सौदे में कोई विशेष रियायतें या नियमों का उल्लंघन हुआ।
राजनीतिक विवाद
यह मामला लंबे समय से राजनीतिक विवाद का केंद्र रहा है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस सौदे को लेकर वाड्रा और कांग्रेस पार्टी पर हमला बोला है, इसे भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग का उदाहरण बताया है। BJP का दावा है कि वाड्रा ने अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि और कांग्रेस के प्रभाव का उपयोग करके अनुचित लाभ कमाया। दूसरी ओर, रॉबर्ट वाड्रा, प्रियंका गांधी और कांग्रेस पार्टी ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज किया है। उनका कहना है कि यह जांच और आरोप “राजनीतिक प्रतिशोध” का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य गांधी परिवार और कांग्रेस को बदनाम करना है। वाड्रा ने दावा किया है कि वह एक निजी व्यवसायी हैं और उनके सभी लेनदेन पारदर्शी और कानूनी हैं।
ED की जांच और वर्तमान स्थिति
ED ने इस मामले में कई लोगों से पूछताछ की है, जिसमें वाड्रा, स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी के प्रतिनिधि, और DLF के अधिकारी शामिल हैं। वाड्रा से पहले भी कई बार पूछताछ हो चुकी है, और इस बार लगातार तीन दिनों तक ED कार्यालय में उनसे पूछताछ हो रही है। सूत्रों के अनुसार, ED वित्तीय दस्तावेजों, बैंक लेनदेन, और सौदे से जुड़े अन्य रिकॉर्ड की गहन जांच कर रही है।
अन्य संबंधित पहलू
अशोक खेमका का रोल: खेमका ने इस मामले को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन उनकी कार्रवाई के बाद उनका तबादला कर दिया गया, जिसे उन्होंने स्वयं राजनीतिक दबाव का परिणाम बताया।
DLF की भूमिका: DLF ने दावा किया है कि सौदा पूरी तरह से वैध था और इसमें कोई अनियमितता नहीं थी। कंपनी ने कहा है कि जमीन का मूल्यांकन बाजार दरों के अनुसार किया गया था।
जाहिर है की गुरुग्राम भूमि सौदा मामला एक जटिल और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा है, जो वित्तीय अनियमितताओं, नौकरशाही कार्रवाइयों, और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों का मिश्रण है। रॉबर्ट वाड्रा और उनकी कंपनी पर लगे आरोपों की गंभीरता को देखते हुए ED की जांच का परिणाम इस मामले के भविष्य को निर्धारित करेगा।