IMG 20200917 WA0059

भगवान विश्वकर्मा को जाने 

  • भगवान विश्वकर्मा को जाने

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!
भगवान दरअसल सृष्टि के भी रचयिता हैं। उन्होंने ब्रह्मा की रचना की । फिर ब्रह्मा ने दुनिया चलाने के लिए कई विश्वकर्मा बनाये। हालांकि बाद में विश्वकर्मा एक पद रह गया । अब देखिए कि विश्वकर्मा किस तरह आधुनिक इंजीनियरिंग के बाप थे । जिस तरह अभी इंजीनियरिंग की अलग अलग शाखाये हैं उसी तरह विश्वकर्मा के विभिन्न पदों की शाखाएं थी। मुख्य रुप से 5 शाखाये बनी जिसके आदि विश्वकर्मा सानग ,सनातन , अहमन ,प्रयत्न और सुपर्ण हुए । इन्होंने 25 – 25 उपशाखाएँ बनाई और इंजीनियरिंग के सुपर स्पेशलाइजेशन जैसी शाखाये बनी। इसलिए विश्वकर्मा के पांच मुख बताये गए हैं। सानग विश्वकर्मा ऋषि लौह जिसे मेकैनिकल इंजीनियरिंग भी कह सकते हैं के अधिष्ठाता हैं। उसी तरह सनातन विश्वकर्मा ऋषि अलौह धातुओ के इंजीनियरिंग के अधिष्ठाता हैं।प्रत्न या प्रयत्न विश्वकर्मा ऋषि सिविल इंजीनियरिंग आदि पुरुष हैं। अहमन विश्वकर्मा ऋषि इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिग के स्वामी है जबकि सुपर्ण को सोना , चांदी जैसे कीमती धातु के इंजीनियरिंग का अधिष्ठाता माना गया है। आप समझ सकते हैं कि इन पांचों की 25 उपशाखाएँ मतलब 125 ट्रेड यानी पौराणिक काल मे अभियांत्रिकी शाखा कितनी समृद्ध रही होंगी। अगर स्कंध पुराण और विश्वकर्मा पुराण को देखें तो ऐरोनॉटिक्स और स्पेस इंजीनियरिंग का श्रेय मय विश्वकर्मा ऋषि को दे सकते हैं । वराहमिहिर ने भी विश्वकर्मा के विभिन्न संकायाध्यक्ष होने की बात मानी है। विश्वकर्मीयम ग्रंथ पहला तकनीकी ग्रंथ है। विश्वकर्मा की वंशावली भी इस ग्रंथ में है। भगवान विश्वकर्मा ने इंद्रपुरी ,लंकापुरी , इंद्रप्रस्थ , जयंतीपुरी  , अमरावती , कुबेरपुरी आदि शहरों को वैज्ञानिक तरीक़े से न केवल निर्माण किया / बसाया बल्कि पुष्पक विमान , सुदर्शन चक्र , कालदंड , शंकर का त्रिशूल , अग्नि तीर , वायु तीर, औऱ अन्य मिसाइल भी बनाये । स्कन्दपुराण में तो विश्वकर्मा भगवान के ऐसे अविष्कारों की चर्चा है जो आज हम सोच या देख रहे हैं। पुष्पक विमान जहां लंबी उड़ानों के लिए निर्मित किया गया वही ड्रोन जैसे उपकरण के सहारे छोटी और नीची उड़ान का भी फार्मूला तैयार किया गया । केवल खड़ाऊं पहनकर नदी पार करने की तकनीक बनी। ऋषि भृगु के पुत्र शुक्राचार्य थे जिन्होंने ओशनस नामक ग्रंथ लिखा जिसमे अंतरिक्ष विज्ञान ,  हवा , सूर्यप्रकाश जैसे उर्जाश्रोतो की चर्चा है। सच तो यह है आज जिसे इंजीनयर या वैज्ञानिक कहा जाता है पौराणिक काल मे विश्वकर्मा कहा जाता था ।  आदि शंकराचार्य के बाद शंकराचार्य की गद्दी बनी , कालिदास के बाद कालिदास का पद बना , शुक्राचार्य , वेदव्यास जैसे पद बने वैसे ही आदि विश्वकर्मा के बाद विभिन्न ऋषियों को विश्वकर्मा पद से नवाजा गया । आज चिकित्सक अपने नाम के आगे डॉक्टर लिखते हैं और इंजीनियर के आगे ई . लिखकर अपनी पहचान बताते हैं उसी तरह पौराणिक काल मे अपने नाम के आगे या पीछे विश्वकर्मा जोड़कर अपनी अलग पहचान बनाते थे ।
Share via
Send this to a friend