20250509 154919

झारखंड सरकार का ऐतिहासिक फैसला: डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय का नाम अब वीर शहीद बुधु भगत विश्वविद्यालय

झारखंड सरकार का ऐतिहासिक फैसला: डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय का नाम अब वीर शहीद बुधु भगत विश्वविद्यालय
झारखंड सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है, जिसके तहत रांची स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय का नाम बदलकर वीर शहीद बुधु भगत विश्वविद्यालय किया गया है। यह फैसला 8 मई  को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में हुई झारखंड मंत्रिपरिषद की बैठक में लिया गया। इस निर्णय को आदिवासी समाज के गौरव और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को सम्मान देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। हालांकि, इस नामकरण को लेकर कुछ राजनीतिक विवाद भी सामने आए हैं।
निर्णय
नाम परिवर्तन: झारखंड सरकार ने झारखंड राज्य विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2017 में संशोधन को मंजूरी दी, जिसके तहत डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय का नाम अब वीर शहीद बुधु भगत विश्वविद्यालय होगा। यह विश्वविद्यालय रांची में स्थित है और 1949 में स्थापित रांची कॉलेज को 2018 में विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया था।
कैबिनेट की मंजूरी: कैबिनेट सचिव वंदना डाडेल ने बताया कि 8 मई  की बैठक में कुल 34 प्रस्तावों को स्वीकृति दी गई, जिनमें यह नाम परिवर्तन प्रमुख था।
मांग का इतिहास: कई आदिवासी संगठनों और नेताओं द्वारा लंबे समय से इस विश्वविद्यालय का नाम बदलकर किसी स्थानीय आदिवासी नायक के नाम पर करने की मांग की जा रही थी।
वीर शहीद बुधु भगत कौन थे?
: बुधु भगत का जन्म 17 फरवरी 1792 को रांची जिले के चान्हो प्रखंड के सिलागांई गांव में एक उरांव आदिवासी किसान परिवार में हुआ था।
कोल विद्रोह (1831-32): बुधु भगत ने अंग्रेजों, जमींदारों और साहूकारों के शोषण और अत्याचार के खिलाफ कोल विद्रोह (जिसे लरका विद्रोह भी कहा जाता है) का नेतृत्व किया। यह विद्रोह रांची, हजारीबाग, पलामू, तक फैला था। उनके नेतृत्व में हजारों आदिवासी योद्धाओं ने तीर-धनुष और पारंपरिक हथियारों के साथ अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी।
शहादत: 13 फरवरी 1832 को सिलागांई गांव में अंग्रेजी सेना ने बुधु भगत और उनके अनुयायियों को घेर लिया। भारी गोलीबारी में लगभग 300 ग्रामीण मारे गए, जिसमें बुधु भगत और उनके बेटे हलधर और गिरधर भी शहीद हो गए। इस विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने क्रूर बल का उपयोग किया।
विरासत: बुधु भगत को उनकी संगठन क्षमता, नेतृत्व और आदिवासी स्वाभिमान की रक्षा के लिए याद किया जाता है। उनके विद्रोह ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पहले ही स्वतंत्रता की चिंगारी जलाई थी।
निर्णय का महत्व
आदिवासी गौरव को सम्मान: यह नामकरण झारखंड के आदिवासी समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक कदम है। बुधु भगत कोल विद्रोह के प्रमुख नायक थे, और उनके नाम पर विश्वविद्यालय का नामकरण आदिवासी इतिहास और संस्कृति को बढ़ावा देगा।
सामाजिक न्याय: झारखंड सरकार ने इसे “अबुआ सरकार” (हमारी सरकार) की प्रतिबद्धता के रूप में प्रस्तुत किया, जो स्थानीय नायकों और उनकी शहादत को सम्मान देने के लिए कटिबद्ध है।
विवाद और प्रतिक्रियाएँ
समर्थन:
झामुमो और समर्थक: झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और आदिवासी संगठनों ने इस फैसले को ऐतिहासिक और आदिवासी गौरव को सम्मान देने वाला बताया। कृषि मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह निर्णय कोल विद्रोह के महानायक का सम्मान है।
सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय लोग: कई स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इसे आदिवासी पहचान को मजबूत करने वाला कदम बताया। एक
विरोध:
भाजपा का विरोध: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस निर्णय को “इतिहास के साथ खिलवाड़” करार दिया। उनका कहना है कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जो भारतीय जनसंघ के संस्थापक और देश के लिए महत्वपूर्ण योगदान देने वाले नेता थे, के नाम को हटाना उनका अपमान है। साथ ही, भाजपा ने तर्क दिया कि यह निर्णय बुधु भगत की वीरता को भी उचित सम्मान नहीं देता, क्योंकि यह केवल नाम बदलने तक सीमित है।
बाबूलाल मरांडी का बयान: भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने इसे “गलत परंपरा” स्थापित करने वाला और संस्थानों की स्थिरता को कमजोर करने वाला कदम बताया।
आदिवासी आंदोलन: झारखंड में आदिवासी संगठन लंबे समय से अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को मान्यता देने की मांग करते रहे हैं। इस निर्णय को इस दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा रहा है।
राजनीतिक रणनीति: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह निर्णय 2024 के विधानसभा चुनावों के बाद झामुमो-गठबंधन सरकार की आदिवासी मतदाताओं को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
जाहिर है झारखंड सरकार का यह निर्णय वीर शहीद बुधु भगत के बलिदान और आदिवासी स्वाभिमान को सम्मान देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह कदम न केवल शिक्षा के क्षेत्र में बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी झारखंड की पहचान को मजबूत कर सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share via