जमशेदपुर एमजीएम अस्पताल हादसा: मेडिसिन वार्ड का छज्जा गिरा, चार मरीज मलबे में दबे
जमशेदपुर के महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) अस्पताल में हुआ बड़ा हादसा, अस्पताल के मेडिसिन वार्ड का छज्जा गिरने से चार मरीज मलबे में दब गए, यह वार्ड वर्षों से जर्जर हालत में था, और इसके बावजूद इसमें मरीजों को भर्ती किया जा रहा था। हादसे के समय वार्ड में मौजूद मरीजों और उनके परिजनों में अफरा-तफरी मच गई।
यह घटना स्वास्थ्य सेवाओं और प्रशासनिक लापरवाही की गहरी खामियों को भी उजागर करता है। यह घटना अस्पताल के जर्जर ढांचे, प्रबंधन की उदासीनता और जिला प्रशासन की जवाबदेही की कमी को सामने लाती है।
हादसे का विवरण
शनिवार सुबह, एमजीएम अस्पताल के पुराने मेडिसिन वार्ड में अचानक छज्जा भरभरा कर गिर पड़ा। यह वार्ड वर्षों से जर्जर हालत में था, और इसके बावजूद इसमें मरीजों को भर्ती किया जा रहा था। हादसे के समय वार्ड में मौजूद मरीजों और उनके परिजनों में अफरा-तफरी मच गई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, छज्जा गिरने से धूल का गुबार उठा और चीख-पुकार का माहौल बन गया। चार मरीज मलबे में दब गए, जिनमें से दो की हालत गंभीर बताई जा रही है। कई अन्य मरीज और कर्मचारी मामूली रूप से घायल हुए।
हादसे की सूचना मिलते ही दमकल विभाग, जिला प्रशासन और पुलिस की टीमें मौके पर पहुंचीं। बचाव कार्य युद्धस्तर पर शुरू किया गया, और मलबे में दबे मरीजों को निकालने के प्रयास किए गए। घायलों को तत्काल अन्य वार्डों या नजदीकी अस्पतालों में स्थानांतरित किया गया। अस्पताल परिसर में डर का माहौल बना रहा, और कई मरीज अपने रिश्तेदारों के साथ परिसर छोड़कर चले गए।
अस्पताल की जर्जर संरचना
एमजीएम अस्पताल का पुराना भवन दशकों पुराना है और इसकी स्थिति लंबे समय से चिंताजनक बनी हुई है। दीवारों में दरारें, छतों से रिसाव और कमजोर छज्जे इस भवन की बदहाली के स्पष्ट संकेत थे। स्थानीय लोगों, अस्पताल कर्मचारियों और सामाजिक संगठनों ने कई बार इस भवन को खाली करने और मरम्मत या पुनर्निर्माण की मांग की थी, लेकिन इन मांगों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
हालांकि, अस्पताल का एक नया भवन निर्माणाधीन है, लेकिन यह अभी पूरी तरह तैयार नहीं है। इसके बावजूद, पुराने भवन में सैकड़ों मरीजों को भर्ती किया जा रहा था, जो इस हादसे का प्रमुख कारण बना। यह स्थिति प्रश्न उठाती है कि आखिर क्यों प्रशासन ने मरीजों की जान को जोखिम में डाला और समय रहते पुराने भवन को खाली नहीं किया।
प्रशासन और प्रबंधन की लापरवाही
इस हादसे ने एमजीएम अस्पताल प्रबंधन और जिला प्रशासन की लापरवाही को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। मरीजों और उनके परिजनों का आरोप है कि अस्पताल प्रशासन को जर्जर भवन की स्थिति के बारे में बार-बार सूचित किया गया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। कुछ कर्मचारियों ने बताया कि भवन की मरम्मत के लिए मामूली कार्य किए गए, लेकिन ये कार्य अपर्याप्त और दिखावटी थे।
जिला प्रशासन की ओर से भी इस मामले में उदासीनता बरती गई। भवन की नियमित जांच, सुरक्षा ऑडिट और मरम्मत के लिए कोई ठोस नीति लागू नहीं की गई। यह हादसा प्रशासन की उस मानसिकता को दर्शाता है, जो जोखिमों को नजरअंदाज कर “चलता है” के रवैये को अपनाती है।
मरीजों और परिजनों की प्रतिक्रिया
हादसे के बाद अस्पताल परिसर में भय और अविश्वास का माहौल है। मरीज, जो पहले से ही बीमारियों से जूझ रहे हैं, अब अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। कई मरीजों ने अन्य वार्डों में स्थानांतरण या अस्पताल छोड़ने का फैसला किया। परिजनों में गुस्सा और निराशा साफ देखी जा सकती है। उनका कहना है कि यदि प्रशासन ने समय रहते कदम उठाए होते, तो यह हादसा टाला जा सकता था।
कुछ परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है, जबकि सामाजिक संगठनों और स्थानीय नेताओं ने इस घटना को “आपराधिक लापरवाही” करार देते हुए दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है।
प्रशासन का रुख और जांच
हादसे के बाद जिला प्रशासन ने मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। पुराने भवन को तत्काल खाली करने और मरीजों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करने के निर्देश जारी किए गए हैं। एमजीएम अस्पताल के अधीक्षक ने दावा किया कि घायल मरीजों का इलाज प्राथमिकता पर किया जा रहा है और हादसे की जांच के लिए एक विशेष टीम गठित की गई है।
हालांकि, ये कदम अब उठाए जा रहे हैं, जब नुकसान हो चुका है। प्रशासन के इस “हादसे के बाद जागने” के रवैये पर सवाल उठ रहे हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि जांच के नतीजे क्या सामने आते हैं और क्या वास्तव में दोषियों को जवाबदेह ठहराया जाता है।