देवघर प्रशासन ने दो पहिए वाहनों को चार पहिया बता कर डीजल करोडो के बिल का भुगतान (Million bill payment) कर दिया : मीडिया रिपोर्ट
Million bill payment
ऑडिटर जनरल यानि AG ने इस पर एजी ने भू-राजस्व के अपर मुख्य सचिव और देवघर के डीसी से पक्ष रखने को कहा
झारखण्ड के देवघर जिले में ऑडिटर जनरल यानि AG कार्यालय की ओर से कराई गई ऑडिट में करोड़ों रुपए की गलत बिल भुगतान (Million bill payment) का मामला सामने आया हैं। मीडिया रिपोर्ट की मने तो छह माह तक चली ऑडिट रिपोर्ट पर एजी ने जिला प्रशासन से जवाब भी मांगा, लेकिन नहीं मिला। ऑडिटर जनरल यानि AG ने इस पर एजी ने भू-राजस्व के अपर मुख्य सचिव और देवघर के डीसी से पक्ष रखने को कहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो ऑडिट में पता चला कि देवघर जिला प्रशासन ने दो पहिए वाहनों को चार पहिया बता कर डीजल बिल का भुगतान कर दिया है। यह सिलसिला पांच वर्षों से चल रहा है। इस दौरान 5361 लीटर डीजल का अवैध भुगतान हुआ है, जिस पर करीब 3.45 लाख रुपए खर्च हुए हैं।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2021 तक के बीच किराया, लैंडिंग पार्किंग और आरटीआई मद में वसूले गए 48.25 लाख रु. जमा नहीं किए गए। ऑडिट जांच रिपोर्ट में कहा है कि अगस्त 2016 से जुलाई 2021 तक 4.55 करोड़ रुपए के वाउचर एडजस्ट नहीं हुए हैं। यह राशि बिना आवंटन के खर्च की गई।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे हुआ घोटाला
1.दो पहिया वाहन में 3.45 लाख रुपए के डीजल भरवा दिए
ऐजी की जांच में पता चला कि देवघर जिला प्रशासन ने पेट्रोल से चलने वाले दो पहिया वाहनों को चार पहिया बता पांच सालों में 3.45 लाख रुपए का डीजल भरवा लिया। इस दौरान 5361 लीटर डीजल का अवैध भुगतान हुआ है। ऐसे 135 दो पहिए वाहन के डिटेल्स एजी की जांच में सामने आए हैं। 25 ऐसे पेट्रोल से चलने वाले चार पहिया वाहनों की डिटेल्स भी मिली हैं, जिसके नाम पर हर माह 30-30 लीटर डीजल खर्च दिखाया गया है। रोचक बात यह है कि यह अब तक चल रहा है और किसी अधिकारी ने इसको नोटिस नहीं किया।
ऑडिट टीम ने जो गड़बड़ियां पकड़ी हैं उसमें एक यह भी मामला है कि जिला नजारत देवघर द्वारा किराया, लैंडिंग पार्किंग और आरटीआई मद में वर्ष 2016 से वर्ष 2021 के दौरान कुल एक करोड़ 27 लाख 44 हजार की वसूली नाजिर रसीद से की गईं। इसमें से 79.18 लाख रुपए राजस्व ही सरकारी खजाने में जमा किए गए।
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बाकी 48.25 लाख सरकारी खजाने में जमा ही नहीं हुए। यह पैसा कहां गया, इसका कहीं कोई हिसाब-किताब नहीं है। इस बारे में जब एजी ने संबंधित अधिकारी से जवाब मांगा तो कागजात प्रस्तुत नहीं कर पाए। जवाब भी नहीं दिया।
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ऑडिट टीम ने कहा है कि 31 अगस्त 2021 को जो शेष राशि दिखाई गई है, उसमें 4.55 करोड़ रुपए का वाउचर समायोजित ही नहीं है। असमायोजित राशि का बिल बढ़ता ही चला गया। 4.55 करोड़ बकाए में कुछ 33 साल के भी मामले हैं। लेकिन, अब तक किसी पर एफआईआर नहीं हुई है।
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डीसी देवघर द्वारा 11 करोड़ रुपए अग्रिम दिए गए। यह राशि कर्मचारियों, पदाधिकारियों एवं निजी प्रतिष्ठानों व आपूर्तिकर्ताओं को दी गई। इसमें से 6.60 करोड़ का ही समायोजन हुआ, शेष राशि अभी भी खजाने में जमा नहीं हई है। कार्रवाई भी नहीं की गई। जबकि एक माह से अधिक अग्रिम नहीं रखा जा सकता।
महालेखाकार की ऑडिट टीम को स्थानीय कार्यालय द्वारा रिकॉर्ड नहीं उपलब्ध कराने में आनाकानी हो रही थी। बार बार मांगने पर भी रिकार्ड नहीं उपलब्ध कराए जाने पर दो माह पहले एजी की ओर से इसकी शिकायत देवघर डीसी और अपर मुख्य सचिव (भू-राजस्व) से की गई थी । कहा था कि बार रिमाइंडर देने के बाद भी ऑडिट टीम को जरूरी कागजात उपलब्ध नहीं कराए गए हैं।
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रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016 से अब तक जो देवघर डीसी रहे हैं उनमें- अरवा राजकमल, राहुल कुमार सिन्हा, नैंसी सहाय, कमलेश्वर प्रसाद सिंह और मंजूनाथ भजंत्री के नाम हैं।
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झारखंड वित्तीय नियमावली की धारा 9 में कहा गया है कि प्रत्येक अधिकारी सरकारी खजाने से धन खर्च करने में सतर्कता बरते। खर्च मंजूर करने में अपनी शक्ति का प्रयोग ऐसे आदेश पारित करने के लिए नहीं करेगा, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसके अपने लाभ में हो।