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टाटा-कांड्रा-सरायकेला-चाईबासा सड़क: कोल्हान की लाइफलाइन बनी कष्टों भरी सफर

टाटा-कांड्रा-सरायकेला-चाईबासा सड़क: कोल्हान की लाइफलाइन बनी कष्टों भरी सफर

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सरायकेला: कोल्हान की लाइफलाइन मानी जाने वाली टाटा-कांड्रा-सरायकेला-चाईबासा सड़क की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। 65 किलोमीटर के इस मार्ग पर 6,000 से अधिक गड्ढों ने राहगीरों के लिए खतरा पैदा कर दिया है। इस सड़क पर यात्रा करने वालों को न केवल जान का जोखिम उठाना पड़ रहा है, बल्कि तीन टोल नाकों पर भारी-भरकम टोल भी चुकाना पड़ता है।

जनता की पुकार, प्रशासन की बेरुखी
स्थानीय जनप्रतिनिधियों से लेकर सामाजिक संगठनों तक ने इस सड़क की मरम्मत के लिए आवाज उठाई है, लेकिन स्थिति जस की तस है। सरायकेला-खरसावां के जिलाधिकारी नीतीश कुमार सिंह ने सड़क निर्माता कंपनी जेआरडीसीएल को आदेश और पत्राचार की बात कही, मगर कंपनी प्रशासन के निर्देशों को ठेंगा दिखा रही है। हाल ही में सरायकेला नगर पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष मनोज कुमार चौधरी ने सड़क पर धान रोपकर सांकेतिक विरोध जताया, लेकिन इसका भी कोई असर नहीं हुआ।

जन कल्याण मोर्चा की कानूनी लड़ाई
सामाजिक संगठन जन कल्याण मोर्चा ने इस मामले को अनुमंडल कोर्ट में ले जाकर पब्लिक पिटीशन दायर की है, जो अभी विचाराधीन है। संगठन के अध्यक्ष ओम प्रकाश ने कहा, “जनता को अपनी जान जोखिम में डालकर इस सड़क पर सफर करना पड़ रहा है। आखिर इंसाफ कब मिलेगा, इसका इंतजार हम सबको है।”

आर्थिक और रणनीतिक महत्व
यह सड़क न केवल कोल्हान की लाइफलाइन है, बल्कि एक महत्वपूर्ण इंटर-स्टेट राजमार्ग भी है। इस मार्ग से रांची, पश्चिम बंगाल और ओडिशा तक आवागमन होता है। आयरन ओर ढुलाई का यह मुख्य रास्ता है, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। हर दिन हजारों वाहन और दर्जनों वीवीआईपी इस सड़क से गुजरते हैं। इसके बावजूद, सड़क की दुर्दशा पर सरकार और संबंधित विभागों की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है।

क्या है जनता की मांग?
स्थानीय लोग और सामाजिक संगठन मांग कर रहे हैं कि सड़क की तत्काल मरम्मत की जाए और जेआरडीसीएल पर कड़ी कार्रवाई हो। जनता का सवाल है कि जब इस सड़क से सरकार को इतना राजस्व मिल रहा है, तो इसकी मरम्मत के लिए फंड क्यों नहीं?

 

 

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