कोरोना की मार, झारखंड में साढ़े सात लाख बने कर्जदार सालभर में 17.70 लाख से बढ़कर 25.23 लाख हो गई तादाद
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी के फेसबुक वाल से
बैंकों ने राज्य सरकार को भेजी रिपोर्ट, डेढ़ गुना हुआ इजाफा
बीमारी और बेरोजगारी से जूझने के लिए कर्ज लेने वालों की बढ़ी तादाद
औसतन एक लाख कर्ज लेने वालों की सबसे ज्यादा है तादाद
कारोबार या परिसंपत्ति के लिए नहीं लेंगे इतने कम कर्ज
कोरोना ने जिंदगी, सेहत, रोजी, रोजगार और पढ़ाई छीनने के साथ ही माली चोट देकर भी सालोंसाल के लिए तबाही का निशान छोड़ दिया है। कोरोना की पहली लहर शुरू होने के सालभर के भीतर झारखंड में सात लाख 53 हजार लोग कर्जदार हो गए हैं। बैंकों की ओर से तैयार रिपोर्ट से इसका खुलासा हुआ है। बैंकिंग के जानकारों के मुताबिक सालभर में साढ़े सात लाख नए लोगों का कर्जदार बन जाना एक रिकॉर्ड है। इससे पहले के सालों में नए कर्जदारों की संख्या कभी भी ढाई लाख को पार नहीं कर सकी थी।
वित्तीय वर्ष 2019-20 की समाप्ति पर झारखंड में बैंकों से कर्ज लेने वालों की संख्या 17 लाख 70 हजार थी। यह वही समय था जब कोरोना की पहली लहर ने हफ्ते भर पहले झारखंड को चपेट में लिया था। मानवता को ग्रास बनाने से बचाने के लिए उस समय देशव्यापी लॉकडाऊन शुरू हुआ था। इसके साल भर पूरे होने के बाद झारखंड में कर्जदारों की संख्या 25 लाख 23 हजार 419 हो गई है। यानी 31 मार्च 2021 तक सात लाख 53 हजार 617 नए लोगों ने लिया है। बैंकों की ओर से राज्य सरकार को यह रिपोर्ट भेजी गई है। पेट की जंग लड़ने की खातिर बैंकों से इतर स्थानीय साहूकारों और माइक्रो फाइनांस कंपनियों से कर्ज लेने वालों की तादाद भी काफी बड़ी है। ऐसे कर्जदारों की संख्या का पूरा लेखा-जोखा उपलब्ध नहीं है।
कर्ज की रोटी बचा रही जिंदगी
कोरोना ने काम-धंधों, रोजी-रोजगार, कारोबार और आजीविका को ऐसी चोट दी है कि लाखों लोग कर्ज के भरोसे ही केवल दो जून की रोटी जुटा पा रहे हैं। बैंकों से साढ़े सात लाख नए कर्ज लेने वालों में से अधिकतर की कर्ज की राशि एक लाख के आस-पास है। यह राशि कोई भी कोरोना काल में कारोबार खड़ा करने के लिए नहीं लेगा। जाहिर है कि इतनी राशि दैनिक जरूतों को पूरा करने के लिए ली गई है या फिर बीमार से जूझने के लिए लिया गया है। छोटे-मोटे धंधों वालों ने चौपट कारोबार से जूझने के लिए भी कार्यशील पूंजी की जुगाड़ में कर्ज लिया हो सकता है। अभिभावकों की नौकरी छूट जाने के कारण बच्चों की पढ़ाई का सिलसिला नहीं टूटने देने के लिए भी लोगों ने कर्ज लिए हैं।
कर्जदारों का गणित
2019-20
17 लाख 70 हजार 792
2020-21
25 लाख 23 हजार 419
आगे हो सकता है बड़ा संकट
-व्यक्तिगत कर्ज की सीमा चूक जाने के बाद लोगों को खाने के लाले पड़ सकते हैं।
-पैसे के अभाव में बेरोजगार माता-पिताओं के बच्चों की पढ़ाई छूट सकती है।
-बीमारों के इलाज में बाधा पड़ सकती है। दवा जुटाने में भी मुश्किल आ सकती है।
उपाय क्या है
-कोरोना के कारण सबसे अधिक पिछड़ने वाले खास सेक्टर की सरकार पहचान करे।
-उन खास सेक्टरों के फिर से सुचारू करने के लिए उपाय तलाशे जाएं।
-सबसे अधिक रोजगार खोने वाले सेक्टर पर सरकार फोकस करे।
-आर्थिक प्रवाह बढ़ाने के लिए सरकारी परियोजनाओं की रफ्तार तेज की जाए।
-निजी संरचनागत परियोजनाओं के विकास की गति तेज की जाए।
साल दर साल कर्ज
साल कर्जदार कर्ज राशि
2020-21 25,23,419 41 हजार 704 करोड़
2019-20 17,70,792 27 हजार 492 करोड़
2018-19 15,05,788 27 हजार 027 करोड़
2017-18 13,28,038 24 हजार 833 करोड़
2016-17 10,60,316 21 हजार 907 करोड़