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नेपाल में राजशाही की मांग तेज : प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी, सड़कों पर उबाल

नेपाल में एक बार फिर राजशाही की बहाली और हिंदू राष्ट्र की मांग को लेकर आंदोलन तेज हो गया है। राजधानी काठमांडू सहित देश के विभिन्न हिस्सों में हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए हैं, जिन्होंने मौजूदा लोकतांत्रिक गणराज्य व्यवस्था के खिलाफ नारेबाजी की और पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के समर्थन में नारे लगाए। इस दौरान पुलिस के साथ झड़प की खबरें भी सामने आई हैं, जिसमें कई प्रदर्शनकारी घायल हुए हैं।

1 जून को हुए प्रदर्शन के दौरान राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) के नेता और पूर्व गृह मंत्री कमल थापा को पुलिस ने हिरासत में लिया। थापा राजशाही समर्थकों के प्रमुख नेताओं में से एक हैं और उनके नेतृत्व में 29 मई से शांतिपूर्ण प्रदर्शन चल रहे थे। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि जब तक राजशाही की बहाली और नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित नहीं किया जाता, उनका आंदोलन जारी रहेगा।

2008 में नेपाल में 240 साल पुरानी राजशाही का अंत हुआ था और देश को संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया था। हालांकि, प्रदर्शनकारी मौजूदा व्यवस्था को जनता के लिए भ्रामक और सांस्कृतिक पहचान को नष्ट करने वाला मानते हैं। उनका कहना है कि राजशाही की वापसी से नेपाल की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित किया जा सकता है। कुछ संगठनों का यह भी दावा है कि वे भारत के दक्षिणपंथी आंदोलनों से प्रेरित हैं।

पिछले कुछ महीनों में राजशाही समर्थकों के प्रदर्शन हिंसक रूप ले चुके हैं। मार्च 2025 में काठमांडू में हुए एक प्रदर्शन में दो लोगों की मौत हो गई थी, जिसके बाद सरकार ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की सुरक्षा में कटौती कर दी थी। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने संसद में कहा था कि हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों को कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।

नेपाल के संविधान में राजशाही को दोबारा लागू करने की कोई व्यवस्था नहीं है, और संसद में इस मांग का समर्थन नगण्य है। विशेषज्ञों का मानना है कि राजशाही समर्थकों के बीच एकजुटता की कमी और हिंसक प्रदर्शनों के कारण इस आंदोलन का भविष्य अनिश्चित है।

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