झारखण्ड में माटी है लेकिन, माटी कला बोर्ड राम भरोसे.
दिलेश्वर लोहरा, कलाकार
रांची, झारखंड.
झारखंड में माटी एवं माटी कला से जुड़े हुए कलाकार की कमी नहीं है. झारखंड इसलिए बिहार से अलग हुआ था क्योंकि झारखंड के कला प्रतिभा को मौका नहीं मिल पाता था. बिहार से अलग हुए झारखण्ड को 20 साल होने जा रहा है, माटी शिल्पकार एवं कुम्हार की हालत क्या है जिला में किसी से छिपा नही है. कुम्हार एवं माटी शिल्पकला के विकास करने के लिए 3 साल पहले झारखंड माटी कला बोर्ड का गठन किया गया जिसके प्रथम अध्यक्ष श्रीचंद प्रजापति थे.
3 साल के कार्यकाल में शिल्पकारों को विकसित करने का लक्ष्य रखा गया था जिसमें बोर्ड कामयाब नही हो सका. सबसे पहले ढांचागत चीजों का ध्यान देना होगा जो माटी कला बोर्ड के पास नहीं है. बोर्ड को सबसे पहले प्रशिक्षण केंद्र खोलना होगा, उसके साथ अच्छे प्रशिक्षक हों जो माटी कला के बारे विधिवत जानकारी दे सके. माटी शिल्पकार को तकनीकी ज्ञान के साथ साथ आधुनिक तरीके से मिट्टी को बनाने के लिए भी मशीन चाहिए.
मिट्टी के बर्तन दीये, तावा, गिलास, जीवन के घरेलू उपयोग में आने वाले वस्तु उत्पादन करना जरूरी है, तभी कला को विकासित कर सकते हैं. पर्व त्वोहार में सीजन के अनुरूप बाजार की मांग के अनुसार उत्पादों का निर्माण कर बाजार लाना चाहिए. मिट्टी के पक्के हुए हाथी, घोड़ा के साथ साथ कई सजावटी चीजों के अलावा सरकारी भवनों एवं पार्को में गमला की जरूरत पड़ती है, जिसका अच्छा डिमांड रहता है. रोजगार के साथ साथ कुम्हारों के लिए अनुदान की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे अपने कार्य करने में सरकार से आर्थिक मदद मिल सके.
अभी माटी कला बोर्ड में अध्यक्ष पद खाली पड़ा हुआ है, चिंता की विषय हैं जब माटी कला को प्रोत्साहन देने वाली संस्था में अध्यक्ष पद रिक्त हो तो विभाग कर्मचारी क्या करेंगे, बिना कार्यक्रम और बिना योजना के सिर्फ समय गुजारना ही मजबूरी है. झारखंड सरकार को चाहिए कि तुरंत झारखंड माटी कला बोर्ड के अध्यक्ष पद मनोनीत कर माटी कला को राज्य में विकास के लिए नीति बनाने की पहल करनी चाहिए .