रूपेश(Rupesh Pandey) की हत्या पर बाल संरक्षण आयोग ने डीजीपी से मांगा जबाव
Ranchi: हजारीबाग में मूर्ति विसर्जन के दौरान 7 फरवरी को रूपेश पांडेय(Rupesh Pandey) की हत्या की गूंज संसद तक पहुंच गई है. सांसद संजय सेठ ने इस मामले को संसद में उठाया. इधर, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी संज्ञान लिया है और डीजीपी को पत्र लिखकर मामले की निष्पक्ष जांच कराने का आग्रह किया है. बाल संरक्षण आयोग ने डीजीपी से 7 दिनों के अंदर इस मामले पर जवाब मांगा है
गुमला-लोहरदगा सीमा पर स्थित बुलबुल जंगल(BULBUL JUNGLE) में आईडी ब्लास्ट
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने डीजीपी को पत्र के माध्यम से बताया है कि हजारीबाग पुलिस इस मामले को दबाने का प्रयास कर रही है. आयोग ने पत्र के माध्यम से बताया कि नाबालिग बच्चे की हत्या का यह एक गंभीर मामला है और इस मामले को निष्पक्ष तरीके से जांच की जाए.
आपको बता दें कि रूपेश के परिजनों की शिकायत पर प्राथमिकी भी दर्ज की गई है जिसमें 27 नामजद सहित 100 अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया है. इस बीच भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने आरोप लगाया है कि भीड़ ने जिस प्रकार सरस्वती प्रतिमा विसर्जन के दौरान घेर कर रूपेश पांडेय की हत्या की वह एक भीड़ हिंसा है और इसी आधार पर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए. उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार वास्तविक अपराधियों को बचाने की कोशिश में है.
इधर, सांसद संजय सेठ ने मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की. श्री सेठ ने कहा कि झारखंड में भीड़ के द्वारा हिंसा, मॉब लिंचिंग की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. कुछ दिन पूर्व सिमडेगा में एक युवक संजू प्रधान को घर से खींच कर जमकर पिटाई की गई और परिवार के सामने ही भीड़ ने जिंदा जला दिया. आश्चर्यजनक बात यह रही कि पुलिस इन घटनाओं में मूकदर्शक बनी रही. सिमडेगा की घटना में तो पुलिस वीडियो बनाती रही. सरकार और प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा.
संजय सेठ ने कहा कि दिन प्रतिदिन झारखंड की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है. अन्य जिलों में भी मॉब लिंचिंग की घटनाएं हो चुकी हैं. राज्य की कानून व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़े हो रहे हैं. लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है. मॉब लिंचिंग की घटनाओं के कारण झारखंड में दहशत का माहौल है. स्थिति यह है कि कब, कहां, किसे भीड़ खींच कर मार दे, कहना मुश्किल है. राज्य में अराजकता बढ़ चुकी है. सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि इन घटनाओं पर देश के बुद्धिजीवी, तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता और भी ऐसे कई लोग जो बात बात में लोकतंत्र की आजादी मांगते हैं, मोमबत्तियां जलाते हैं, सब के सब लोग खामोश हैं.