झामुमो का भाजपा पर पलटवार: सरना धर्म कोड पर आरोपों को बताया ढकोसला, कहा
झामुमो का भाजपा पर पलटवार: सरना धर्म कोड पर आरोपों को बताया ढकोसला, कहा- आदिवासियों के हितों से भाजपा को कोई सरोकार नहीं
रांची : आकाश सिंह
रांची, : सरना धर्म कोड के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) पर लगाए गए आरोपों का झामुमो ने तीखा जवाब दिया है। झामुमो के महासचिव व प्रवक्ता विनोद कुमार पांडेय ने भाजपा पर आदिवासियों के हितों की अनदेखी करने और इस मुद्दे को राजनीतिक स्वार्थ के लिए उछालने का आरोप लगाया।
पांडेय ने कहा कि सरना धर्म कोड आदिवासी अस्मिता और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है, जिसके लिए झामुमो शुरू से प्रतिबद्ध रहा है। उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा, “भाजपा ने हमेशा आदिवासियों की मांगों को नजरअंदाज किया और उनके अधिकारों को कुचलने का प्रयास किया। केंद्र में 10 साल से अधिक समय तक सत्ता में रहने के बावजूद भाजपा ने सरना धर्म कोड को लागू करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया।”
भाजपा पर गंभीर आरोप
पांडेय ने भाजपा की नीतियों को आदिवासी विरोधी करार देते हुए कहा कि उनकी सरकारों ने वनाधिकार कानून और स्थानीय नीति जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर आदिवासियों के हितों के खिलाफ काम किया। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “जो पार्टी आदिवासियों की जमीन कॉरपोरेट्स को सौंपना चाहती है, वह आज घड़ियाली आंसू बहा रही है।”
सरना धर्म कोड की मांग
झामुमो नेता ने स्पष्ट किया कि सरना धर्म कोड की मांग वर्षों पुरानी है और यह आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को मान्यता देने का सवाल है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार इस मुद्दे पर गंभीर है और केंद्र सरकार पर इसे लागू करने के लिए दबाव बना रही है। पांडेय ने भाजपा से सवाल किया, “क्या भाजपा संसद में सरना धर्म कोड के समर्थन में प्रस्ताव लाएगी, या सिर्फ जनता की भावनाओं को भड़काने का काम करेगी?”
जनता देगी जवाब
पांडेय ने अंत में चेतावनी दी कि झारखंड की जनता भाजपा की चालों को समझ चुकी है और आगामी चुनावों में इसका करारा जवाब देगी। उन्होंने कहा, “आदिवासी समुदाय अपनी अस्मिता के लिए संघर्ष कर रहा है, और झामुमो उनके साथ खड़ा है।”
जाहिर है सरना धर्म कोड की मांग झारखंड के आदिवासी समुदायों द्वारा लंबे समय से की जा रही है, जो प्रकृति पूजा पर आधारित सरना धर्म को जनगणना में अलग धार्मिक श्रेणी के रूप में मान्यता देने की वकालत करता है। झारखंड में लगभग 26% आबादी आदिवासी है, जिसमें संथाल, मुंडा, उरांव और खड़िया जैसी जनजातियां शामिल हैं।