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न्यायपालिका Supreme Court से विनम्र निवेदन एक टैक्सपेयर का दर्द

हँसडीहा/अभिषेक कुमार”प्रफुल्ल”*

तुम हमें वोट दो; हम तुम्हें-*
… लैपटॉप देंगे ..
… स्कूटी देंगे ..
… हराम की बिजली देंगे ..
…. लोन माफ कर देंगे
..कर्जा डकार जाना, माफ कर देंगे
… ये देंगे .. वो देंगे ..

*ये क्या खुल्लम खुल्ला रिश्वत नहीं?*

*कोई चुनाव आयोग है भी कि नहीं इस देश में !*
*आयोग की कोई गाइडलाइंस है भी कि नहीं, वोट के लिए आप कुछ भी प्रलोभन नहीं दे सकते?*

ये जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा है
इसकी *जवाबदेही* होनी चाहिये
रोकिए भई ये सब ..
वर्ना *बन्द कीजिये ये चुनाव के नाटक .. मतदान ।*

*हम मध्यमवर्गीय तंग आ गए हैं, क्या हम इन सबके लिए ईमानदारी से भर-भर कर टैक्स चुकाते हैं?*

डिफाल्टर की कर्जमाफी .. फोकट की स्कूटी हराम की बिजली
हराम का घर दो रुपये किलो गेंहू
तीन रुपये किलो चावल…
चार – छह रुपये किलो दाल ..
कितना चूसोगे हमें?

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क्योंकि! वे तुम्हारे आका हैं!
गरीब थोकिया वोट बैंक हैं, इसलिए फोकट खाना घर बिजली कर्जा माफी दिए जा रहे हैं
हम किस बातकी सजा भोग रहे हैं?

जबकि होना ये चाहिये कि हमारे टैक्स से सर्वजनहिताय काम हों, देश के विकास में काम हों तो टैक्स चुकाना अच्छा लगता..
लेकिन आप तो देश के एक बहुत बड़े भाग को शाश्वत गरीब ही बनाए रखना चाहते हो। उसके लिए रोजगार सृजन के अनूकूल परिस्थिति बनाने की बजाए आप तथाकथित सोशल वेलफेयर की खैराती योजनाओं के माध्यम से अपना अक्षुण्ण वोट बैंक बना रहे हो
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*चुनाव आयोग एवं सर्वोच्च न्यायालय से निवेदन हैं कि कर्मशील देश के बाशिन्दों को तुरंत कानून लाकर कुछ भी फ्री देने पर बंदिश लगाई जाए ताकि देश के नागरिक निकम्मे न बने*

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