रांची में “काले सोने” से अवैध ईंट भट्ठों का फलता फूलता कारोबार : मैकलुस्कीगंज, चान्हो, मांडर, बुढ़मू ,खलारी में अवैध कोयला तस्करी के बल पर ईंट भट्ठों ने कई सौ एकड़ जमीन को बंजर बना डाला ! ,देखे वीडियो
रांची में “काले सोने” से अवैध ईंट भट्ठों का फलता फूलता कारोबार : मैकलुस्कीगंज, चान्हो, मांडर, बुढ़मू ,खलारी में अवैध कोयला तस्करी के बल पर ईंट भट्ठों ने कई सौ एकड़ जमीन को बंजर बना डाला !
रांची : अरविंद
रांची, 30 मई : रांची से महज 50 किलोमीटर दूर आप निकल जाए तो कभी मिनी लंदन कहा जाने वाला मैकलुस्कीगंज ,आज टूरिस्ट प्लेस इनदिनों आपको ईंट भट्ठों का काले धुंए से गुलजार नजर आएगा। इतना ही नही चान्हो, मांडर, बुढ़मू ,खलारी में अवैध ईद भट्ठों का जाल बिछा है
दिन में सड़क किनारे धड़ल्ले से काम चलता हुआ
रांची जिले के चान्हो, मांडर, बुढ़मू, खलारी और पिपरवार क्षेत्रों में सैकड़ों ईंट भट्ठों की चिमनियाँ रात के ही नही दिन में भी धुआँ उगल रही हैं, चान्हो, मांडर, बुढ़मू और खलारी में अवैध कोयला तस्करी और ईंट भट्ठों का यह काला खेल न सिर्फ पर्यावरण को तबाह कर रहा है, बल्कि प्रशासन की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठा रहा है।
ये पत्रकार को दिखा पर बंद है पुलिस की आंखे
पर्यावरण और राजस्व पर दोहरा वार :
ये अवैध भट्ठे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं, बल्कि सरकार को लाखों रुपये के राजस्व का चूना भी लगा रहे हैं। कोयले और मिट्टी के अवैध खनन से नदियों का कटाव बढ़ रहा है, भूजल स्तर गिर रहा है और वायु प्रदूषण बेकाबू हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के जिगजैग तकनीक जैसे पर्यावरणीय दिशानिर्देशों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं।
इनके पीछे का ईंधन है अवैध “कोयला तस्करी”।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अवैध खनन पर रोक लगाने की हुंकार भर चुके हैं, मगर प्रशासन का ब्रेक अब फेल होता दिख रहा है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की सख्त नजरों के बावजूद, कोयला तस्करों और भट्ठा मालिकों का गठजोड़ बेरोकटोक फल-फूल रहा है।
दिन में चलता अवैध कारोबार
रात की आड़ में कोयले की तस्करी
खलारी, पिपरवार और बालूमाथ के कोयला खदानों और रेलवे साइडिंग से हर रात सैकड़ों टन कोयला चोरी-छिपे ईंट भट्ठों तक पहुँच रहा है। सूत्रों के मुताबिक, प्रतिदिन हजारो टन से ज्यादा अवैध कोयला चान्हो, मांडर और बुढ़मू के करीब 500 ईंट भट्ठों में खपाया जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि इनमें से लगभग भट्ठों के पास खनन, वन या पर्यावरण विभाग से कोई अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) नहीं है। कैसे चल रहा है यह काला धंधा?
तस्करी का तंत्र: रात के सन्नाटे में ट्रकों और छोटे वाहनों के जरिए कोयला खलारी और पिपरवार कोयलांचल से मैकलुस्कीगंज और बुढ़मू के रास्ते भट्ठों तक पहुँचाया जाता है। पुलिस पर मिलीभगत का आरोप
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस काले कारोबार में पुलिस और गश्ती दलों की मिलीभगत साफ दिखती है। बुढ़मू ,खलारी, पिपरवार, बालूमाथ, चान्हो और मांडर थाना क्षेत्रों से गुजरने वाले कोयला लदे ट्रकों को हरी झंडी दिखाने के लिए तस्कर कथित तौर पर प्रति ट्रक एक निश्चित राशि का भुगतान करते हैं। रात में गश्त के बावजूद अवैध कोयला निर्बाध रूप से भट्ठों तक पहुँच रहा है, जो प्रशासनिक नाकामी की ओर इशारा करता है। पर्यावरणीय क्षति:
प्रदूषण: ईंट भट्ठों से निकलने वाला धुआँ (लगभग 750 एसएमपी तक प्रदूषण) वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण है। कोयले के उपयोग से यह समस्या और गंभीर हो जाती है। जलस्तर में कमी: मिट्टी खनन और पानी के अत्यधिक उपयोग से भूजल स्तर गिर रहा है। वनों का विनाश: जंगल की लकड़ियों का उपयोग ईंट पकाने के लिए किया जाता है, जिससे वन संपदा को नुकसान होता है। राजस्व हानि:
अवैध भट्ठों के कारण खनिज और राजस्व विभाग को लाखों रुपये की हानि होती है, क्योंकि ये भट्ठे बिना लाइसेंस के संचालित होते हैं। कानूनी उल्लंघन:
पर्यावरण विभाग, खनिज विभाग, और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति लेना अनिवार्य है, लेकिन अवैध भट्ठे इन नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हैं।
कुछ मामलों में, भट्ठा संचालक शासकीय जमीन पर कब्जा करके या नदियों के किनारे मिट्टी खनन करके पर्यावरण और स्थानीय समुदाय को नुकसान पहुँचाते हैं। सामाजिक प्रभाव:
अवैध भट्ठों के खिलाफ शिकायत करने वाले ग्रामीणों को धमकियाँ मिलती हैं, जिससे स्थानीय समुदाय में डर का माहौल बनता है।
जाहिर है बुढ़मू, मैकलुस्कीगंज, और खलारी में नदियों (जैसे दामोदर) और ग्रामीण इलाकों की उपलब्धता के कारण ईंट भट्ठों का संचालन आम है। इन क्षेत्रों में अवैध भट्ठों की मौजूदगी की संभावना है, क्योंकि झारखंड के कई हिस्सों में कोयले की आसान उपलब्धता और कमजोर निगरानी के कारण अवैध कारोबार फलता-फूलता है।
दृष्टि नाउ उम्मीद करता है खनन, वन और पर्यावरण विभाग को संयुक्त छापेमारी अगर अवैध भट्ठों पर की जाए तो पूरा काला कारोबार का गठजोड़ सामने आ जाएगा।