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लाल आतंक का पर्याय रहे दानियल ने राइफल छोड़ हाथों में थाम ली कुदाल कृषि कार्य से जुड़कर गरीबी उन्मूलन और पर्यावरण संरक्षण का बन गए दूत

पवन
लोहरदगा। प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) का पूर्व कमांडर दानियल लकड़ा, जो कभी लाल क्रांति की दिशा में आतंक का पर्याय था, अब वह कृषि से कार्य से जुड़ हरित क्रान्ति से गरीबी उन्मूलन और पर्यावरण संरक्षण का दूत बन गया है। दानियल अब समाज के मुख्य धारा में जुड़कर आगे बढ़ने की राह पकड़ ली है। दानियल कई वर्षों तक संगठन से जुड़ा रहा। हिंसक घटनाओं को अंजाम देता रहा। जब वह फरवरी 2013 में सरेंडर होकर जेल गया, तो उसके चिंतन की धाराएं ही बदल गई। पत्नी और परिवार के सदस्यों ने भी उसके मन को बदलने में अहम भूमिका निभायीं। नवंबर 2013 को जेल से निकलने के बाद उसमें आए बदलाव को देखकर पहले लोगों को भरोसा नहीं हुआ, लेकिन उसने कुछ ऐसा करने का निश्चय किया जिससे गांव और समाज के लोगों को प्रेरणा मिल सके। घरेलू विवाद, जिल्लत और मार-पीट से तंग आकर घर छोड़ वह जंगलों की ओर भागा था। फिर हथियार उठाकर कई वर्षों तक जंगलों में लाल आतंक फैलाता रहा। लेकिन जंगलों में भी वैसा ही जिल्लत झेलने को मजबूर होना पड़ रहा था, जिसके चलते कभी उसने हथियार उठाया था। पूर्व नक्सली कमांडर दानियल लकड़ा का कहना है कि जंगलों से आगे भी जिंदगी है। उन्होंने मुख्यधारा में लौटकर बागवानी और खेती को जीवन का मकसद बनाया। आज वे फख्र के साथ न सिर्फ अपनी जिंदगी जी रहे हैं, बल्कि दजनों ग्रामीणों को इज्जत की जिंदगी जीने व आर्थिक समृद्धि के गुर सिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। दानियल का कहना है कि दूसरे अन्य भटके युवा वर्ग को भी इसी प्रकार से आगे आना चाहिए। भंडरा थाना क्षेत्र के धनामुन्जी गांव निवासी दानियल लकड़ा अब किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा।

आत्मसमर्पण कर सबको चौंका दिया था दानियल

अचानक फरवरी 2013 में सरकार के आत्मसमर्पण नीति का फायदा उठाते हुए दानियल ने आत्मसमर्पण कर सबको चौंका दिया। वह मुख्य धारा में लौटकर दिखा दिया कि गुनाह के दलदल से निकलना नामुमकिन और असंभव नहीं। इस बीच दानियल लकड़ा को सरकार और जिला प्रशासन के जरिए करीब दो लाख पचास हजार रुपए के चेक दिए गए। अब कुख्यात दानियल बंदूक छोड़कर कुदाल पकड़ ली बागवानी और खेती को ही अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा बना चुका है।

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युवाओं के लिए सबक है दानियल की जिंदगी

सरकार की आत्मसमर्पण नीति के तहत पुलिस प्रशासन ने बाकायदा एक कार्यक्रम आयोजित करके दानियल का मुख्यधारा की जिंदगी में स्वागत किया। प्रशासन की तरफ से उसे चेक और कैश भी दिये गये, ताकि मुख्यधारा में आकर वह अपना पुनर्वास जीवन व्यतीत कर सके। ये सच है कि जिंदगी में कई बार हालात ऐसे बन जाते हैं कि समाज और व्यवस्था से मन खिन्न हो जाता है। दानियल के साथ भी तो यही हुआ था, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि हथियार उठा लिया जाए। दानियल की कहानी ऐसे तमाम युवाओं के लिए एक सबक है, जो किसी क्षणिक आवेश या किसी घटना विशेष से आहत होकर भटकाव की राह पकड़ लेते हैं।

हाथों में राइफल की जगह कुदाल से संवारी जिंदगी

एक समय ऐसा था कि इस कुख्यात नक्सली का नाम सुनते ही लोगों के हाड़ कांपते थे। हर समय हाथों में कारबाइन या राइफल हुआ करता था, लेकिन अब दानियल के हाथों में कुदाल देखकर सभी आश्चर्यचकित हैं। इनके बदले जिंदगी और इनके खेती को दूर-दूर से लोग देखने धानामुंजी गांव पहुंच रहे हैं। वर्ष 2011 में दानियल का कदम दहशत और अपराध की दुनिया में पूरी तरह जमा हुआ था। इसी बीच उसका विवाह शील तिग्गा नामक युवती से लव मैरेज हो गई। जब पत्नी को अचानक पति के नक्सली होने का पता चला तो उसकी पैरों तले जमीन खिसक गई। हर वक्त भय में जीने को मजबूर थी। पत्नी शील तिग्गा हर वक्त चिंता में रहती थी कि कब पति पुलिस की गोली का शिकार हो जाए। लेकिन पत्नी की सूझ-बूझ और प्रेरणा ने नक्सली पति को हिम्मत दी और वह सरकार की समर्पण नीति के तहत मुख्य धारा मे लौट आया।

तीन एकड़ भूमि पर लगाये आम की बागवानी

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दानियल लकड़ा ने बताया कि जब वह जमानत पर जेल से रिहा होकर गांव वापस आए, तो ग्रामीण उससे काफी प्रभावित हुए। सबों ने उसके तरफ सहयोगात्मक रवैया अपनाया। पत्नी ने हिम्मत दी और बागवानी में हाथ बंटाया। मनरेगा योजना के तहत करीब दो एकड़ पुश्तैनी भूमि पर आम्रपाली, हिमसागर, मालदा, जर्दालू, सोनपरी जैसी कई वेरायटी आम के पौधे लगाए।अब उसके दिलोदिमाग में लाल क्रांति की जगह हरित क्रान्ति ने ले ली। लगातार मेहनत और देख-रेख से सकारात्मक परिणाम मिले हैं। वह पिछले चार वर्षों से बागवानी के जरिए डेढ़-दो लाख रुपए की मुनाफा कमाने लगे हैं।

तीन एकड़ भूमि पर लहलहा रही मिर्च, अच्छी आमदनी की उम्मीद

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दानियल बताते हैं कि उनके इटकी रांची निवासी रमेश नामक एक मित्र ने उन्हें मिर्च की खेती का मशविरा दिया। उनके मशविरे को अमली जामा पहनाने के लिए एक ग्रामीण की करीब तीन एकड़ खाली पड़ी भूमि को लीज पर लेकर उसमें मिर्च की खेती शुरू कर दी है। उन्होंने अपनी एक पुराने ट्रेक्टर से जुताई कर बेड बनाए, घेराबंदी की और दो प्रकार के मिर्च के पौधे लगाए हैं। उन्होंने अपने मित्र रमेश की मदद से ड्रिप इरिगेशन सिस्टम्स भी लगाया है। अगले एक-दो महीने में उन्हें मिर्च की खेती से भी मुनाफा होने की उम्मीद है।

सरेंडर पॉलिसी के तहत नहीं दी गई नौकरी, न तो भूमि व आवास

झारखंड सरकार के सरेंडर पॉलिसी के तहत इन्होंने फरवरी 2013 में खूंटी में सरेंडर किया, जहां से लोहरदगा जेल भेज दिया गया। फिर हजारीबाग स्थित ओपन जेल में शिफ्ट कर दिया गया। जहां से इन्हें नवंबर 2013 को जमानत पर रिहा कर दिया गया। दानियल कहते हैं कि सरेंडर पॉलिसी के तहत उन्हें सरकार की ओर से सिर्फ दो लाख पचास हजार सहयोग राशि चेक के रूप में दी गई। सरेंडर पॉलिसी के तहत पुनर्वास के लिए नौकरी, आवास, भूमि आदि देने की बात की गयी थी। लेकिन उन्हें अब तक न तो नौकरी दी गई न भूमि दी गई है। उसका कहना है कि उसके साथ जो अन्य नक्सली सरेंडर किए थे, उनमें अधिकांश लोगों को नौकरी व भूमि भी दे दी गई। जबकि वे कई बार प्रशासन को आवेदन भी दे चुके हैं, लेकिन अब तक सिर्फ आश्वासन ही मिलता रहा है।

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