झारखंड में पेसा कानून पर सियासी घमासान: रघुवर दास का हेमंत सरकार पर तीखा हमला
झारखंड में पेसा कानून पर सियासी घमासान: रघुवर दास का हेमंत सरकार पर तीखा हमला
रांची, 28 मई : झारखंड की राजनीति में एक बार फिर पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने हेमंत सोरेन सरकार पर पेसा कानून लागू न करने का गंभीर आरोप लगाया है। रांची में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दास ने सरकार पर विदेशी धर्मों के दबाव में काम करने का सनसनीखेज दावा किया, जिसने आदिवासी समाज के स्वशासन के अधिकार को कथित तौर पर ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
“आदिवासी समाज के साथ विश्वासघात”
रघुवर दास ने तल्ख शब्दों में कहा, “झारखंड के वीर सपूतों—धरती आबा बिरसा मुंडा, सिदो-कान्हू और पोटो हो—ने स्वशासन के लिए अंग्रेजों से लोहा लिया था। लेकिन आज, एक सरना समाज के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में भी आदिवासी समाज अपनी परंपरागत व्यवस्था से वंचित है।” उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सरकार को पेसा लागू करने से अपनी सत्ता खोने का डर है?
दास ने बताया कि जुलाई 2023 में पेसा नियमावली का प्रारूप प्रकाशित हुआ था, जिस पर पंचायती राज विभाग ने जनता और संगठनों से राय मांगी थी। विधि विभाग और महाधिवक्ता ने 22 मार्च 2024 को इस प्रारूप को मंजूरी दे दी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन किया गया है। इसके अलावा, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के प्रतिनिधियों ने क्षेत्रीय सम्मेलन में इस पर सहमति जताई। फिर भी, कानून लागू करने में देरी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
“विदेशी धर्म का दबाव या सत्ता की साजिश?”
रघुवर दास ने दावा किया कि सत्ताधारी गठबंधन में शामिल कुछ लोग, जो विदेशी धर्मों को मानते हैं, पेसा कानून को लागू होने से रोक रहे हैं। उन्होंने कहा, “ऐसे लोग सत्ताधारी पार्टी और सरकार में बड़े पदों पर बैठे हैं। क्या सरना समाज को सशक्त करने से इनके हितों को चोट पहुंचती है?” दास ने आरोप लगाया कि कुछ ताकतें आदिवासी परंपराओं को कमजोर करना चाहती हैं और पेसा के तहत पारंपरिक स्वशासन के बजाय छठी अनुसूची के तहत नामांकन-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहती हैं, ताकि गैर-आदिवासी तत्व इसमें घुसपैठ कर सकें।
उन्होंने यह भी कहा कि पेसा लागू होने से 112 अनुसूचित प्रखंडों में आदिवासी समुदाय को लघु खनिज, बालू और पत्थर जैसे संसाधनों पर नियंत्रण मिलेगा। इससे बालू माफिया और सिंडिकेट को नुकसान होगा, जो शायद इस देरी के पीछे एक कारण हो सकता है।
कांग्रेस पर भी निशाना, सरना कोड का मुद्दा गरमाया
प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद पूर्व केंद्रीय मंत्री सुदर्शन भगत ने कांग्रेस और झामुमो पर आदिवासी समाज को गुमराह करने का आरोप लगाया। भगत ने कहा, “1961 की जनगणना में कांग्रेस ने ही आदिवासी कोड हटाया था। 2012 में यूपीए सरकार ने मेरे द्वारा उठाए गए सरना कोड के सवाल को अव्यवहारिक बताकर खारिज कर दिया था।” उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस-झामुमो गठबंधन को आदिवासी संस्कृति और धर्म की कोई चिंता नहीं है, और वे केवल वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं।
“इतिहास माफ नहीं करेगा”
रघुवर दास ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को चेतावनी देते हुए कहा, “आदिवासी समाज के अधिकारों का हनन इतिहास में दर्ज होगा। हेमंत जी को तत्काल पेसा नियमावली को कैबिनेट से पारित कर लागू करना चाहिए।” उन्होंने जाति प्रमाण पत्र में धर्म का कॉलम फिर से शामिल करने की मांग भी दोहराई, ताकि आदिवासी समाज के हक को कोई और न छीन सके।
पेसा कानून क्यों है अहम?
पेसा कानून आदिवासी क्षेत्रों में पारंपरिक स्वशासन को मजबूत करने के लिए 1996 में लागू किया गया था। इसके तहत ग्राम सभाओं को जल, जंगल, जमीन और लघु खनिजों पर अधिकार मिलता है। झारखंड में इसकी अनुपस्थिति ने आदिवासी समुदायों में असंतोष को जन्म दिया है, जो अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को संरक्षित करने के लिए संघर्षरत हैं।