छत्तीसगढ़ में 208 माओवादियों ने किया आत्मसमर्पण, उत्तर बस्तर क्षेत्र नक्सल-मुक्त घोषित : देखे वीडियो
छत्तीसगढ़ में 208 माओवादियों ने किया आत्मसमर्पण, उत्तर बस्तर क्षेत्र नक्सल-मुक्त घोषित
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!जगदलपुर, 17 अक्टूबर – छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में नक्सलवाद के खिलाफ चल रही मुहिम को बड़ी सफलता मिली है। शुक्रवार को 208 नक्सलियों ने जगदलपुर में औपचारिक रूप से हथियार डालकर मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया। इनमें 98 पुरुष और 110 महिलाएं शामिल हैं। यह सरेंडर राज्य के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा की वर्चुअल उपस्थिति में संपन्न हुआ। इस घटना के साथ ही उत्तर बस्तर क्षेत्र को पूरी तरह नक्सल प्रभाव से मुक्त घोषित कर दिया गया है, जबकि अब केवल दक्षिण बस्तर में सीमित प्रभाव बाकी रह गया है।यह आत्मसमर्पण छत्तीसगढ़ सरकार की ‘नक्सल उन्मूलन एवं पुनर्वास नीति 2025’ का प्रत्यक्ष परिणाम है, जो विकास, संवाद और सुरक्षा बलों की सघन कार्रवाई पर आधारित है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे “नक्सलवाद के अंत की शुरुआत” बताते हुए बधाई दी है।
सरेंडर करने वाले नक्सलियों का प्रोफाइल
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली प्रतिबंधित संगठन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओइस्ट) के विभिन्न स्तरों के कैडर थे। इनमें उच्च पदस्थ नेता भी शामिल हैं, जो संगठन की रीढ़ माने जाते थे। नीचे दी गई तालिका में इनकी पदानुक्रमित ब्रेकडाउन दी गई है:
पद संख्या
केंद्रीय समिति सदस्य (CCM) 1
दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति (DKSZC) सदस्य। 4
क्षेत्रीय समिति सदस्य। 1
प्रांतीय समिति सदस्य (DVCM) 21
क्षेत्र समिति सदस्य (ACM) 61
पार्टी सदस्य। 98
पीपुल्स लिबरेशन गोरिल्ला आर्मी (PLGA)/क्रांतिकारी जन परिषद (RPC) कैडर….. 22
कुल। 208
हथियार के साथ नक्सली
प्रमुख नेताओं के नाम
रूपेश उर्फ सतीश: केंद्रीय समिति सदस्य (CCM), संगठन के शीर्ष स्तर पर सक्रिय।
भास्कर उर्फ राजमान मंडावी, रनिता, राजू सलाम, धन्नू वेट्टी उर्फ संतु: दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति (DKSZC) के सदस्य।
रतन एलम: क्षेत्रीय समिति सदस्य। ये नेता दशकों से जंगलों में छिपकर संगठन की गतिविधियां चला रहे थे और सुरक्षा बलों के लिए चुनौती बने हुए थे। इनके सरेंडर से माओवादी संगठन को गहरा झटका लगा है।
समर्पित हथियारों का विवरण
नक्सलियों ने कुल 153 हथियार और गोला-बारूद समर्पित किए, जो उनकी सशस्त्र क्षमता को दर्शाते हैं। इनमें आधुनिक और पारंपरिक हथियार दोनों शामिल हैं:
हथियार संख्या
एके-47 राइफलें ……………… .19
एसएलआर राइफलें। 17
इंसास राइफलें। 23
इंसास एलएमजी। 1
.303 राइफलें ……………….36
कार्बाइन। 4
बीजीएल लॉन्चर। 11
12 बोर या सिंगल शॉट गन 41
पिस्टल। 1
कुल 153
बस से निकलते नक्सली
इसके अलावा, बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री, आईईडी (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) और अन्य उपकरण भी जब्त किए गए। ये हथियार सुरक्षा बलों की लगातार दबिश और घेराबंदी का नतीजा हैं।
सरकारी प्रतिक्रिया और पुनर्वास योजनाएं
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने सरेंडर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, “यह छत्तीसगढ़ के लिए ऐतिहासिक दिन है। हमने नक्सलियों से हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में आने का आग्रह किया था। अब सरकार उनकी सुरक्षा, कौशल विकास और रोजगार सुनिश्चित करेगी।” उन्होंने जोर दिया कि आदिवासी क्षेत्रों में विकास कार्यों को तेज किया जाएगा, जैसे सड़कें, स्कूल, अस्पताल और रोजगार योजनाएं।उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने बताया कि सरेंडर करने वालों को राज्य की पुनर्वास नीति के तहत आर्थिक सहायता, आवास और नौकरी के अवसर प्रदान किए जाएंगे। नीति में शामिल प्रावधान:
आर्थिक पैकेज: प्रत्येक सरेंडर करने वाले को 10,000 रुपये की तत्काल सहायता और मासिक स्टाइपेंड।कौशल प्रशिक्षण: आईटीआई, वोकेशनल कोर्स और स्वरोजगार योजनाएं।
सुरक्षा: परिवार की सुरक्षा और कानूनी सहायता।
मुख्यधारा एकीकरण: शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भाजपा सरकार के 22 महीनों के कार्यकाल में:
477 नक्सली मारे गए।
1,785 गिरफ्तार हुए।
2,110 ने आत्मसमर्पण किया (आज के 208 सहित)।
सरकार का लक्ष्य 31 मार्च 2026 तक पूरे राज्य को नक्सल-मुक्त बनाना है। गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर कहा, “यह मोदी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति का परिणाम है। बस्तर अब शांति और विकास का केंद्र बनेगा।”
छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र दशकों से नक्सलवाद का गढ़ रहा है, जहां आदिवासी समुदायों की गरीबी, भूमि विवाद और विकास की कमी ने माओवादियों को आधार प्रदान किया। सीपीआई (माओइस्ट) ने यहां PLGA के माध्यम से गुरिल्ला युद्ध छेड़ा हुआ था।
हालांकि, पिछले वर्षों में ऑपरेशन प्रहार, समेकित कार्रवाई और ड्रोन सर्विलांस ने उनकी कमर तोड़ दी है।2024-25 में सुरक्षा बलों ने 200 से अधिक एनकाउंटर किए, जिसमें कई शीर्ष कमांडर मारे गए। सरेंडर की यह लहर संगठन के अंदर असंतोष, भुखमरी और दबाव का नतीजा है। विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं की अधिक संख्या (110) दर्शाती है कि जंगलों में जीवन की कठिनाइयों ने उन्हें मुख्यधारा की ओर मोड़ा।
जाहिर है यह सरेंडर न केवल सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण है, बल्कि आर्थिक विकास के द्वार खोलता है। बस्तर में खनन, पर्यटन और कृषि अब तेजी से आगे बढ़ सकेंगे। आदिवासी युवाओं को नक्सलवाद से मुक्त होकर शिक्षा और रोजगार मिलेगा। हालांकि, चुनौतियां बाकी हैं – दक्षिण बस्तर में अभी भी कुछ पॉकेट्स सक्रिय हैं, जहां अतिरिक्त बल तैनात किए जा रहे हैं।









